पिंपरी(व्हीएसआरएस न्यूज) पिंपरी चिंचवड मनपा 2022 चुनाव में शिवसेना की सत्ता आएगी,महापौर भी शिवसेना का होगा। शिवसेना नेता रविंद्र मिर्लेकर का ऐसा बयान शिवसैनिकों में कुछ समय के लिए जोश जरुर भरने का काम किया। लेकिन बयान किसी हास्यपद से कम भी नहीं लगा। ख्याली पुलाव और मुंगेरी लाल के हसींन सपने के अलावा और कुछ नहीं। रविंद्र मिर्लेकर इस शहर के लिए अजनबी नहीं है। शिवसेना के समन्वयक और उपनेता रह चुके है। इनके कार्यकाल और नेतृत्व में 2017 में पिंपरी चिंचवड से दो सांसद श्रीरंग बारणे और शिवाजीराव आढवराव पाटिल निर्वाचित हुए। पिंपरी विधानसभा से अॅड गौतम चाबुकस्वार विधायक बने। 2017 के पालिका चुनाव नतीजों पर अगर नजर डाले तो भोसरी विधानसभा क्षेत्र से शिवसेना का खाता तक नहीं खुला। मतलब शुन्य बटा सन्नाटा। महेश दादा लांडगे की आँधी में शिवसेना के सारे उम्मीदवार तिनके की तरह बिखर गए। इसी क्षेत्र में शिवसेना की महिला तोप सुलभा उबाले खुद चुनाव हार गइर्ं। अब आते हैं पिंपरी विधानसभा क्षेत्र की ओर,यहां से 3 नगरसेवक चुने गए तो चिंचवड विधानसभा क्षेत्र से 6 नगरसेवक निर्वाचित हुए। सांसद श्रीरंग बारणे का बालकिला थेरगांव में शिवसेना को शुन्य नगरसेवक मिला। इस चुनाव में 128 में से शिवसेना ने 118 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। 10 सीटों पर शिवसेना को उम्मीदवार तक नहीं मिल सका।
शिवसेना के दो सांसद और एक विधायक रहते केवल 9 नगरसेवक 2017 के चुनाव में निर्वाचित हुए। यह बात भी मिर्लेकर को अच्छी तरह पता है। वर्तमान में शिवसेना का एकमात्र सांसद श्रीरंग बारणे है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2022 के चुनाव में शिवसेना के कितने नगरसेवक चुनकर आ सकते है। इसके पीछे बडा कारण है। पिंपरी चिंचवड शहर शिवसेना में गुटबाजी चरमसीमा पर है। एक दूसरे को कमजोर करने टांग खिंचाई कर रहे है। श्रीरंग बारण गुट अलग है। मनपा में गुटनेता राहुल कलाटे का गुट अलग है। गजानन बाबर का गुट अलग है। सुलभा उबाले का गुट अलग है। ऐसे गुटबाजी में बेचारे शिवसैनिकों का हाल बुरा है। शिवसेना संगठन को संगठित और मजबुत करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। पांच साल तक शिवसेना संगठन की ओेर कोई ध्यान तक नहीं देता यही हकीकत है और फसाना। शिवसेना के योगेश बाबर शहर अध्यक्ष है लेकिन संगठन में जान नहीं फूंक सके,यही हकीकत है।
शिवसेना का सांसद,विधायक चुनकर आता है लेकिन नगरसेवकों की संख्या नहीं बढती। भले ही श्रीरंग बारणे दिल्ली दरबार से अपने लिए अच्छे आचरण,व्यवहार के दम पर संसद रत्न पुरस्कार विजेता कई बार घोषित हो चुके हो लेकिन शहर शिवसेना संगठन की ओर उनकी मेहरनजर कभी देखने को नहीं मिली। पालिका का इतिहास बताता है कि आज तक अधिकतम शिवसेना का 14 नगरसेवक से ज्यादा कभी चुनकर नहीं आए। लोकसभा,विधानसभा चुनाव में जिस तरह शिवसेना के उम्मीदवार अपने लिए कुशल प्रबंधक बनकर चुनाव लडते हैं और जीतते हैं उस तर्ज पर पालिका चुनाव में उम्मीदवारों को नहीं लडाया जाता। आर्थिक ताकत नहीं दी जाती। कमजोर उम्मीदवार खडा करके खानापूर्ति की जाती है।
अब एक दिन होटल में शिवसैनिकों की बैठक बुलाकर मनपा में सत्ता पाने और खुद का महापौर बनाने का दावा करना मुंगेरीलाल के हसींन सपने नहीं तो और क्या है? इतना जरुर है कि राज्य में शिवसेना की सरकार है। गुटबाजी को भूलाकर एकत्रित होकर मजबुती से चुनाव लडे तो नगरसेवकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। लेकिन ऐसा होगा नहीं। क्योंकि कभी भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं रहा करती। यहां तो कई तलवारें एक दूसरे के खिलाफ खिंची दिखाई दे रही है।
रविंद्र मिर्लेकर जिस शिवसेना पदाधिकारियों की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उसमें सांसद श्रीरंग बारणे,संपर्क प्रमुख बाला कदम,जिला प्रमुख गजानन चिंचवडे,शहर प्रमुख योगेश बाबर,महिला आघाडी शहर संघटक अॅड उर्मिला कालभोर,विधानसभा प्रमुख अनंत कोर्हाले,युवा सेना विस्तार अधिकारी राजेश पलसकर,युवा सेना के विश्वजीत बारणे आदि मान्यवर उपस्थित थे। बारणे ने कहा कि लोकसभा चुनाव के वक्त चिंचवड विधानसभा से शिवसेना को छप्पर फाडकर वोट मिला। यह मतदान को पालिका चुनाव में ट्रांसफर करना है। केवल पैसे के जोर पर मतदान खरीदा नहीं जा सकता। शिवसैनिकों को घर घर जाकर संपर्क करने की जरुरत है। महाराष्ट्र की आघाडी सरकार के जनहित वाले कामों को जनता तक पहुंचाने का काम होना चाहिए। ऐसा तमाम दावे,वादे बैठक में करके शिवसैनिकों को चॉर्ज करने का प्रयास किया गया।
शिवसेना की अभी तक की तैयारी को देखकर दूर दूर तक नहीं लगता कि वो मनपा पर भगवा फहरा सकेगी। सामने राकांपा और भाजपा दो बडी पार्टियां है। तस्वीर बयां कर रही है कि पालिका चुनाव में इन्हीं दो मुख्य धाराओं के बीच कांटे की टक्कर होने जा रही है। चुनाव आते आते कई राजनीतिक उलटफेर भी देखने को मिलेगा। भाजपा के कई नगरसेवक घरवापसी को बेचैन है। कुछ तो उपमुख्यमंत्री अजित पवार की परिक्रमा भी कर आए है। अजित पवार को पिंपरी चिंचवड मनपा में राष्ट्रवादी की सत्ता किसी भी कीमत पर चाहिए। उनके लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा से जुड गया है। लेकिन शहर शिवसेना में ऐसा कोई योद्धा नहीं जो सामने आकर पालिका चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोडकर ताल ठोंक सके। हां! रविंद्र मिर्लेकर अवश्य शब्दों में ताल ठोंक कर गए है। अब देखना है कि चुनाव में इसका कितना असर दिखाई देता है।