Pune News पुणे (व्हीएसआरएस न्यूज) महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के दो सबसे बड़े घटक दल शिवसेना और एनसीपी टूट चुके हैं। दोनों दलों में टूट से कांग्रेस गठबंधन में ड्राइविंग सीट पर आ गई है और शिवसेना-राकांपा पैसेंजर बनकर बैठे है। महाराष्ट्र की सियासत में कांग्रेस के लिए दोनों दलों की आपदा किस तरह से अपनी खोई जगह पाने,खोया जनाधार लाने का अच्छा अवसर है?
महाराष्ट्र में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर जब महा विकास अघाड़ी की नींव रखी थी, तब से अब तक काफी कुछ बदल चुका है। 166 विधायकों के साथ सफर शुरू करने वाले एमवीए ने सत्ता का वसंत देखा तो दो दलों में टूट के दो मामलों के रूप में पतझड़ के मौसम भी। पहले शिवसेना और फिर एनसीपी, एमवीए के दो घटक दलों में हुई टूट की दो घटनाओं से गठबंधन का संख्याबल आधे से भी कम हो गया लेकिन इस पतझड़ में तीसरे घटक कांग्रेस को अपनी सियासत के लिए ’सावन’ नजर आने लगा है। महाराष्ट्र की सियासत में एनसीपी और शिवसेना की आपदा में जानकार कांग्रेस के लिए खुद को खड़ा करने का अवसर देख रहे हैं। शिवसेना और एनसीपी की टूट के बाद कांग्रेस विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बाद संख्याबल के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।
एमवीए की स्थापना के समय शिवसेना के 56, एनसीपी के 54 विधायक थे। कांग्रेस 44 विधायकों के साथ एमवीए में इन दोनों दलों के बाद तीसरे नंबर की पार्टी थी। जहां दोनों दलों का संख्याबल टूट के बाद कम हुआ है तो वहीं कांग्रेस ने उपचुनाव में एक सीट जीतकर उसमें इजाफा ही किया है। बदले हालात में कांग्रेस 45 विधायकों के साथ गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।
शिवसेना और एनसीपी की पकड़ इन इलाकों में
शिवसेना और एनसीपी महाराष्ट्र के एक खास क्षेत्र में मजबूत हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में एनसीपी मजबूत रही है और पार्टी के कुल वोट शेयर में करीब 43 फीसदी वोट इसी इलाके से हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में पुणे, सातारा, सांगली, कोल्हापुर तथा सोलापुर जिले आते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा की कुल 290 सीटों में से करीब 60 विधानसभा सीटें इन जिलों से हैं। शिवसेना की बात करें तो पार्टी मुंबई-ठाणे रीजन में मजबूत रही है। शिवसेना को 2019 चुनाव में इन्हीं इलाकों से अधिकतर सीटें मिली थीं। इन दोनों दलों का एक खास क्षेत्र में मजबूत और बाकी इलाकों में कमजोर पकड़ भी कांग्रेस के नजरिए से अच्छी बात है।
दोनों दलों में टूट के बाद इन इलाकों में भी पार्टियों की पकड़ कमजोर पड़ेगी। कांग्रेस आलाकमान भी इसे समझ रहा है और शायद इसी वजह से दिल्ली में महाराष्ट्र को लेकर मीटिंग पर मीटिंग हो रही है।