Pcmc News पिंपरी (व्हीएसआरएस न्यूज) पिंपरी चिंचवड के सांगवी में 15 सितंबर से शुरु श्री अष्टविनायक शिव महापुराण कथा का आज भव्य समापन हुआ। विश्व विख्यात कथावाचक पं.प्रदीप मिश्रा ने सभी साधकों,भक्तों पर खूब आशीर्वाद की वर्षा की। आज आखिरी दिन 5 लाख भक्त शिव महापुराण कथा सुनने के लिए पहुंचे। तीनों पंडाल खचाखच भरा हुआ था। पंडाल के बाहर,मैदान केे चारों ओर सड़कों पर कुंभ का मेला लगा रहा।
7 दिनों में लगभग 18 लाख भक्त शिव महापुराण कथा सुनकर जीवन धन्य किया-शंकर जगताप
शिव महापुराण कथा के मुख्य आयोजक स्व.लक्ष्मण जगताप व मित्र परिवार और मुख्य प्रबंधक भाजपा शहर अध्यक्ष शंकर जगताप,विधायक अश्विनी जगताप के कुशल नेतृत्व में उच्च कोटि के इंतजाम किए गए। भक्तों और साधकों के भोजन,पानी,मूलभूत सुविधा,रहने की व्यवस्था,सुरक्षा व्यवस्ता का पूरा ध्यान रखा गया। भारी पुलिस व्यवस्था के संग प्रायवेट सुरक्षा कर्मी भी बडी संख्या में तैनात किए गए थे। प्रतिदिन का 2 लाख भक्त कथा में पधारे, तो 6 दिन में 12 लाख और आज समापन के दिन अकेले 5 लाख नागरिक कथा सुनने के लिए पधारे। कुल 18 लाख भक्तों ने सात दिनों में श्री अष्टविनायक शिव महापुराण कथा सुनकर अपना जीवन धन्य कर गए। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पूर्व सत्तारुढ नेता नामदेव ढाके,पूर्व सभापति विलास मडेगिरी,शहर भाजपा के मुख्य प्रवक्ता राजू दुर्गे,एकनाथ पवार,अमित गोरखे समेत एक मजबुत टीम सक्रिय रही।
शिव महापुराण कथा और पं.प्रदीप मिश्रा के चरण स्पर्श से पुणे की भूमि पावन-शंकर जगताप
शंकर जगताप ने अपने विचारों की गंगा बहाते हुए कहा कि 7 दिनों में लगभग 18 लाख भक्तों ने कथा सुनकर अपना जीवन धन्य किया। प्रभू के चरणों में लीन रहे। पं.प्रदीप मिश्राजी के मधुर वाणी से बंधे रहे। पं.मिश्राजी का मैं तहे दिल से अभिनंदन,स्वागत और आभार मानता हूं जिन्होंने महाराष्ट्र की जनता को श्री अष्टविनायक महापुराण कथा को सुनने सुनाने,आत्मा में उतारने का सौभाग्य प्राप्त कराया। पुणे की पावन भूमि में पंडित जी का चरण स्पर्श होने से यह भूमि और पावन हो गई। पंडितजी और भगवान शिवशंकर से यही प्रार्थना है कि भविष्य काल में एक बार फिर कथा के आयोजन का अवसर देने की कृपा करें। …कर्म करो अच्छा करो,दूसरों को सुख शांति दो,भोलेबाबा की गाथा औरों को सुनाओ…पाप का प्रायश्चित इसी जीवन में करो..कथा का यही सार पंडित प्रदीप म़िश्रा अपने भक्तों को दे गए। 7 दिनों में भक्त और भगवान का जो नाता जुडा,आज आखिरी दिन बिछडने का दर्द भी महसुस कर रहे थे। लेकिन अतिथि तो अतिथि होते हैं,उन्हें एक दिन जाना ही पड़ता है। बस यही कह सकते हैं कि…अतिथि तूम फिर कब आओगे?