National News नई दिल्ली (व्हीएसआरएस न्यूज) लंबे इंतजार के बाद आज (11 मई) को सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र राजनीतिक संकट मामले को लेकर फैसला आ गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल महाराष्ट्र में हुए राजनीतिक संकट को लेकर यह फैसला सुनाते हुए इसे बड़ी बैंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर को राजनीतिक दल की तरफ से नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए। अध्यक्ष को हटाने का नोटिस अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए अध्यक्ष की शक्तियों को प्रतिबंधित करेगा या नहीं जैसे मुद्दों को एक बड़ी पीठ की ओर से जांच की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्हिप को पार्टी से अलग करना लोकतंत्र के हिसाब से सही नहीं होगा। पार्टी ही जनता से वोट मांगती है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा। उद्धव ठाकरे को पार्टी विधायकों की बैठक में नेता माना गया था। 3 जुलाई को स्पीकर ने शिवसेना के नए व्हिप को मान्यता दे दी। इस तरह दो नेता और 2 व्हिप हो गए। स्पीकर को स्वतंत्र जांच कर फैसला लेना चाहिए था। गोगावले को व्हिप मान लेना गलत था क्योंकि इसकी नियुक्ति पार्टी करती ह।
राज्यपाल को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
राज्यपाल को वो नहीं करना चाहिए जो ताकत संविधान ने उनको नहीं दी है। अगर सरकार और स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा टालने की कोशिश करें तो राज्यपाल फैसला ले सकते हैं। लेकिन इस मामले में विधायकों ने राज्यपाल को जो चिट्ठी लिखी, उसमें यह नहीं कहा कि वह सरकार हटाना चाहते है। सिर्फ अपनी पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी में असंतोष फ्लोर टेस्ट का आधार नहीं होना चाहिए। राज्यपाल को जो भी प्रस्ताव मिले थे, वह स्पष्ट नहीं थे। यह पता नहीं था कि असंतुष्ट विधायक नई पार्टी बना रहे हैं या कहीं विलय कर रहे हैं।
’अयोग्यता पर नहीं लेंगे फैसला’
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह अयोग्यता पर फैसला नहीं लेगा। स्पीकर को इस मामले में जल्द फैसला लेने के आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि पार्टी में बंटवारा अयोग्यता कार्रवाई से बचने का आधार नहीं हो सकती। उद्धव को दोबारा बहाल नहीं कर सकते। दरअसल, बीते साल एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद शिवसेना दो गुटों में बंट गई थी. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. उद्धव ठाकरे गुट की ओर से 16 विधायकों की सदस्यता की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिस पर आज फैसला आया है।
फैसला सुनाने वाली जजों की बैंच
शिंदे बनाम उद्धव मामले पर पांच जजों की बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली, पीएस नरसिम्हा शामिल है। कोर्ट ने इस मामले में 16 मार्च से 9 दिनों तक दलीलें सुनी थी, जिसके बाद क्रॉस-याचिकाओं के एक बैच पर अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, फरवरी महीने में चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना माना और पार्टी का नाम और चिन्ह ‘धनुष और तीर’ शिंदे गुट को दिया था। वहीं, चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कोर्ट ने इस मामले को 5 सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था। उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए कहा था कि एकनाथ शिंदे गुट के बागियों को किसी पार्टी में विलय करना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे में बगावत करने वालों को अयोग्य घोषित किया जाए।