National लखनऊ(व्हीएसआरएस न्यूज) किसी पार्टी के लिए चुनाव एक नशा है तो किसी पार्टी के लिए चुनाव आते ही कुकुरमुत्ते की तरह उग आने की कला। पिछले 10 सालों से जनता के बीच से गायब रहीं मायावती का यूपी विधानसभा चुनाव आते ही प्रकट होना किसी अचंभव से कम नहीं। भले ही उनके सारे विधायक समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हो,रामअचल राजभर,वर्मा,अंबिका चौधरी,इंद्रजीत सरोज,बाबूलाल कुशवाहा,नसीमउद्दीन सिद्ध्रिकी जैसे धाकड नेता बसपा छोडकर चले गए हो लेकिन मायावती को कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि उनको आज भी लगता है कि दलित वोटर उनके साथ है। लेकिन उनको यह पता नहीं कि यह वोटबैंक उनसे छिंटक गया है। बाकी बचा कुचा कसर भीम आर्मी के रावण ने चुका लिया है।
अब मायावती एक बार फिर से 2007 के अपने पुराने ढर्रे की राह पर चल पडी है। 2007 में ब्राहमण शंख बजाएगा हाथी आगे बढ़ता जाएगा के नारों के साथ 206 सीट जीतकर सरकार बनाई थी। ब्राहमण वोटरों का योगी सरकार से मोहभंग हो गया है,इन्हें अपने पाले में लाने के लिए अपने खासमखास सतीश चंद्र मिश्रा को जिम्मेदारी सौंपी है। इसका आगाज 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन से होने जा रहा है। इस सम्मेलन को ब्राहमण समाज कितना महत्व देता है यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन यह तय है कि बसपा सुप्रिमो मायावती राजनीति के सबसे बुरे दौर से गुजर रहीं है। अपनी अस्तित्व बचाने की लडाई लड़ रही है। अगर 2022 के चुनाव में कुछ करिश्मा नहीं दिखा सकी तो मिट जाएंगी,भूली बिसरी गीत हो जाएंगी।
मायावती 2007 में ब्राहमण बहुल्य सीटों से ब्राहमणों को टिकट देकर मैदान में उतारा था। उनकी गणित यह थी कि ब्राहमण समाज का उम्मीदवार मतलब इस समाज का वोट पक्का,जाटव वोट हमारे हैं,कुछ मुस्लिम वोट को जोडकर उम्मीदवार जीतने की स्थिति में पहुंच जाएगा। इस फॉर्मूले से मायावती सफल भी रही। 2007 में 100 ब्राहमणों को टिकट देकर मैदान में उतारा था। अधिकांश उम्मीदवार जीते भी। 2022 के चुनाव में यही फॉर्मुला दोहराने की फिराक में है। लेकिन कहते हैं कि काठ की हांडी बार बार ना चढती है और न पकती है। कोरोना काल में जब जनता बिना दवाई,बिना हॉस्पिटल,बिना इलाज के मर रही थी,विभिन्न जिलों में दलित बेटियों के साथ जुल्म हो रहा था,ब्रामहण समाज के लोगों को योगी की पुलिस सरेआम दौडाकर एन्काउंटर कर रही थी तो मायावती उस समय कहां थी,बयान क्यों नहीं दी,आंसू पोंछने,विरोध जताने सडकों पर क्यों नहीं उतरी? दिल्ली में गूंगी गुडिया बनकर क्यों बैठी रही? इसका जवाब चुनाव में जनता अवश्य मांगेगी।