पटना(व्हीएसआरएस न्यूज) बिहार विधानसभा में इस बार पिछड़ा वर्ग के विधायकों की हिस्सेदारी में कमी आयी है। करीब 41 फीसदी की भागीदारी कर इस वर्ग के विधायकों की संख्या 117 से घटकर 101 पर ठहर गयी है। 2015 की तुलना में उनके 16 विधायक कम हुए हैं।
वैश्य को छोड़कर मुख्य पिछड़ी जातियों में शुमार किये जाने वाले यादव, कुर्मी और कुशवाहा विधायकों की संख्या घटी है। सबसे ज्यादा यादव विधायक कम हुए हैं। पिछली विधानसभा की तुलना में इस बार 9 सीटों का नुकसान हुआ है फिर भी 52 की संख्या लाकर यादव अभी भी सबसे उपर हैं। 2015 में 61 यादव विधायक जीत कर आये थे. इनमें सबसे अधिक राजद में 35 हैं। विधानसभा में दूसरी सबसे अधिक वैश्य जाति के विधायक चुन कर आये हैं, जिसके 24 विधायक जीत कर सदन पहुंचे। विधानसभा में यादव विधायकों की संख्या अब भी 21 फीसदी से कुछ अधिक ही है।
तुलनात्मक रूप में पिछले चुनाव की तुलना में यह संख्या चार फीसदी कम है। चुनाव परिणामों के आकलन के मुताबिक यादव विधायकों में 35 राजद के हैं। भाजपा के सात,जदयू के पांच,तीन वाम दल,वीआइपी और कांग्रेस का एक-एक यादव विधायक चुनाव जीते हैं। 1952 में प्रदेश की राजनीति में यादवों की भागीदारी 7.9 फीसदी थी। 2015 के चुनाव में इनकी भागीदारी करीब 25 फीसदी से कुछ अधिक थी। इसी तरह दूसरी सबसे बड़ी पिछड़ी जाति कुशवाहा के विधायकों में कमी हुई है। चुनाव में कुशवाहों को विधानसभा में 4 सीटों का हुआ नुकसान है। 2015 की तुलना में उनके विधायकों की संख्या 20 से घटकर 16 हो गयी है।
हालांकि,सियासत में कुशवाहों की भागीदारी 65 साल में 4.5 फीसदी से बढ़ कर 2015 में 8 फीसदी और अब 6.58 फीसदी रह गयी है। कुर्मी विधायकों की संख्या 2015 की तुलना में 12 से घटकर नौ रह गयी है।
करीब एक फीसदी की गिरावट हुई है। कुर्मी जाति की 1952 के चुनाव में 3.6 फीसदी भागीदारी थी. पिछड़ों में शुमार वैश्य विरादरी के विधायकों की संख्या इस बार करीब 10 फीसदी 24 है। पिछली विधानसभा में इनके विधायकों की संख्या 16 है। पिछड़ों में यादवों के बाद विधायकों यह सबसे बड़ी संख्या है। लेकिन बिहार चुनाव में अहीरों को 9 सीटों का हुआ नुकसान पिछली बार 61 थे, अब 52 पर सीमटे।
अपर कास्ट की हिस्सेदारी बढ़कर हुई 26.33 फीसदी इस विधानसभा चुनाव में अपर कास्ट की राजनीतिक हिस्सेदारी में अपेक्षाकृत कुछ इजाफा हुआ है। कुल 64 विधायक चुने गये हैं। जो 26 फीसदी से कुछ अधिक है। हालांकि 2015 में यह हिस्सेदारी 20 फीसदी के आसपास थी।
राजपूतों को हुआ 8 सीटों का फायदा विधान सभा में 20 से बढ़कर 28 हुए। चुनाव में भूमिहारों को हुआ 3 सीटों का फायदा विधान सभा में 18 से बढ़कर 21 हुए। 1952 के विधानसभा चुनाव में यहां अगड़ी जातियों की भागीदारी 46 फीसदी तक रही थी।
अनौपचारिक आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश विधानसभा में इस बार दलित विधायकों की संख्या 39, अति पिछड़ी जातियों के विधायकों की संख्या 22 और मुस्लिम विधायकों की संख्या 20 है। इस तरह दलित 16,अतिपिछड़ा 13 और मुस्लिमों की विधायिका में भागीदारी 8 फीसदी के आसपास है। हालांकि, मुस्लिम और दलित वर्ग के संख्या कमोबेश इतनी ही रही है। अतिपिछड़ा वर्ग की भागीदारी 13 फीसदी के आसपास है, जो अपेक्षाकृत कम है।