दिल्ली| व्हीएसआरएस संवाददाता: भाई और बहन के प्यार के प्रतीक रक्षा बंधन के पर्व को हर साल सावण मास के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा वाले दिन मनाया जाता है। इस वर्ष 22 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षाबंधन का त्योहार बहुत ही शुभ योग और भद्रारहित काल में है। दैवीय कृपा से इस बार राखी पर कोरोना महामारी का भी कोई खास असर नहीं है अन्यथा पिछले साल बहुत से परिवारों में राखी का पर्व वर्चुअल तरीके से मनाया गया था। इसलिए भाई और बहनों का एक दूसरे के घरों में जाकर राखी बांधना इस बार संभव हो पा रहा है।
क्या हैं राखी बाँधने के नियम
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हर शुभ काम करने से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर दिशा में अपना चेहरा कर बैठना चाहिए। शास्त्रों के अनुरूप पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में रक्षासूत्र बाँधना चाहिए एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में राखी बाँधने का विधान है। रक्षा सूत्र बंधवाते वक्त सिर पर रूमाल या कोई कपड़ा अवश्य रखें और बांधने वाली बहन का सिर भी ढंका होना चाहिए। राखी बांधते समय बहनें लाल, गुलाबी, पीले या केसरिया रंग कपड़े पहने तो अच्छा होता है। राखी का बांधा जाना हमें उस संकल्प को याद करते रहना तथा उसकी पूर्ति के लिए प्रयास करते रहना सिखाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हाथ में रक्षासूत्र बंधे होने से व्यक्ति को स्वयं ही परमात्मा द्वारा अपनी रक्षा होने का आभास होता है। जिससे मन में शांति व आत्मबल में वृद्धि होती है।
अच्छे मुहूर्त अथवा भद्रारहित काल में भाई की कलाई में राखी बांधने से भाई को कार्य सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। इस दिन चंद्रमा मंगल के नक्षत्र और कुंभ राशि में गोचर करेंगे। इस बार भद्राकाल का भय भी नही रहेगा और ये पर्व सभी भाई-बहनों के लिए परम कल्याणकारी रहेगा। इसके अलावा इस बार राखी के त्योहार पर वर्षों के बाद एक महासंयोग का निर्माण होने जा रहा है
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस साल 2021 में रक्षाबंधन का त्योहार राजयोग में बनाया जाएगा। राखी बांधते समय भद्राकाल का विशेष ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि भद्राकाल में राखी बांधने पर अशुभ परिणाम की प्राप्ति होती है। हालांकि इस साल राखी या रक्षाबंधन का त्योहार घनिष्ठा नक्षत्र में पड़ रहा है। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले भाई-बहन का रिश्ता बहुत मजबूत होता है तथा इस नक्षत्र में राखी बांधने से भाई-बहन के बीच मनमुटाव दूर होते हैं तथा आपस में प्यार बढ़ता है।
राखी के दिन धनिष्ठा नक्षत्र शाम को 07 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इसके अतिरिक्त इस साल पूर्णिमा तिथि पर भद्रा नहीं लग रहा है इसलिए पूरे दिन राखी बांधी जा सकेगी। हालांकि की पूर्णिमा की तिथि पर शाम को 05.14 बजे से 6.49 बजे तक राहु काल रहेगा। राहु काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इस समय को छोड़ कर पूरे दिन राखी बांधी जा सके
यह मंत्र बोलकर बांधें राखी
सनातन धर्म में अनेक रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं जिनका सिर्फ धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक पक्ष भी है जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक है। मौली को रक्षा कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है। मौली को संकल्प, रक्षा एवं विश्वास का प्रतीक माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मौली बाँधने से त्रिदेव -ब्रह्मा,विष्णु व महेश एवं त्रिदेवियां-लक्ष्मी,पार्वती व सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्माजी की कृपा से कीर्ति विष्णुजी की अनुकंपा से रक्षाबल मिलता है और भगवान शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। आज भी लोग कलावा बांधते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करते हैं।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
राखी पर है गजकेसरी योग
बृहस्पति और चंद्रमा की युति के कारण इस साल राखी पर गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। गज केसरी योग की बहुत ही शुभ माना जाता है। इस साल राखी के दिन बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में वक्री रहेगा तथा चंद्रमा इसके साथ रहने के कारण गजकेसरी योग बन रहा है। इस योग में किए जाने वाले सभी कार्य पूरी तरह सफल सिद्ध होते हैं तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। गज केसरी योग व्यक्ति को राजसी सुख और माना-सम्मान दिलाता है। हालांकि सुबह 10 बजकर 33 मिनट तक शोभन योग रहेगा, इस योग में राखी बांधना शुभ रहेगा। गज केसरी योग में पूरे दिन राखी बांधी जाएगी।
क्या होती है भद्राकाल
जब भी रक्षाबंधन का पर्व आता है तो इस दिन भद्राकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा में राखी न बंधवाने के पीछे एक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार लंका के राजा रावण ने अपनी बहन से भद्रा के समय ही राखी बंधवाई थी। भद्राकाल में राखी बांधने के कारण ही रावण का सर्वनाश हुआ था। इसी मान्यता के आधार पर जब भी भद्रा लगी रहती है उस समय बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी नहीं बांधती है। इसके अलावा भद्राकाल में भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं इस कारण से भी भद्रा में शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन है। भद्रा शनिदेव की तरह उग्र स्वभाव की हैं। भद्रा को ब्रह्राजी ने शाप दिया कि जो भी भद्राकाल में किसी भी तरह का कोई भी शुभ कार्य करेगा उसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी। भद्रा के अलावा राहुकाल में भी किसी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। शास्त्रों में रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा रहित समय में करने का विधान है। भद्रारहित काल में भाई की कलाई में राखी बांधने से भाई को कार्य सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।