गोपालगंज। व्हीएसआरएस संवाददाता: बैकुंठपुर का धनेश्वर नाथ मंदिर अब बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अधीन होगा। इसको लेकर डीएम ने धार्मिक न्यास के अध्यक्ष को पत्र लिखा है। पत्र में उक्त मंदिर को न्यास परिषद के अंतर्गत हस्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है। मालूम
हो कि बैकुंठपुर के पूर्व विधायक एवं जदयू के प्रदेश महासचिव श्री मंजीत कुमार सिंह ने जिला पदाधिकारी गोपालगंज को पत्र लिखकर ऐतिहासिक सिंहासनी मंदिर को धार्मिक न्यास परिषद के अंतर्गत हस्थानांतरित करने हेतु पत्र लिखा है।
जिसमे स्थानीय जन समुदाय एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार धनेश्वर नाथ मंदिर द्वापर युग से संबंध रखता है जिसकी स्थापना महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात पांडवों द्वारा ब्रह्म हत्या एवं स्वजनों के हत्या के दोष के निराकरण हेतु युद्ध के नायक भगवान श्री कृष्ण द्वारा मुक्ति के उपचार के लिए यग करने का निर्देश दिया गया था। जिसके अंतर्गत पांडवों द्वारा स्थल की खोज की गई ,यज्ञ हेतु भूमि का चयन करना था जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से काफी अधिक हो ,स्थल किनारे यज्ञ की सामग्री उपलब्ध हो , उक्त भूमि ऋषियों की तपोभूमि रही हो। यज्ञ हेतु पांडवों द्वारा महर्षि भारद्वाज की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध ग्राम दिघवा के अंतर्गत पड़ने वाले सिंहासनी का चयन किया गया। यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात शिव मंदिर की घंटी नहीं बजने पर राजा युधिष्ठिर द्वारा कारण पूछने पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताया गया कि उक्त स्थल पर प्रसिद्ध संत सुपन डोम को निमंत्रण नहीं देने के कारण बाधा उत्पन्न होने की बात बताई गई। तत्पश्चात राज परिवार के सभी सदस्यों के साथ रानी द्वारा संत सुपन डोम के गांव एकडेरवां पहुंचकर उन्हें निमंत्रण दिया और उनके पहुंचने के पश्चात यज्ञ की घंटी और पांडवों द्वारा उक्त स्थल पर शिवलिंग की स्थापना की गई। मंदिर के पास यज्ञशाला का निर्माण किया गया। यज्ञ सामग्री रखने के लिए ताल का निर्माण किया । रामायण कालीन राजा जनक के यहां स्वयंवर के पश्चात अयोध्या से जा रही बारात के दिलवा में ठहरने और कलेवा खाने की भी चर्चा जन सुर्खियों में मिलती है सारण गजट ईयर में भी दिवाकर का उल्लेख महाभारत काल के होने का जिक्र मिलता है जहां पांडवों द्वारा राजसूय यज्ञ कराया गया था और यज्ञ में धनेश्वर नाथ मंदिर से दिघवा गढ तक भूमिगत सड़क बनाई गई थी। 52 कुएं बानवाए गए थे पोखर भी खुद बाय गए थे जिसका अवशेष खुदाई के समय मिले थे। दिघवा गढ़ भारद्वाज मुनि के पुत्र की तपोस्थली भी रही है।
पुरातत्व विभाग द्वारा भी इसकी जांच की गई और अधिकारियों ने प्राचिन काल के मिट्टी के घड़े और इंट पाया जो हजारों वर्ष पुराना है दिघवा के खेत में गुप्तकालीन ईंट भी पाई गई। सिघासनी में भगवान ब्रह्मा की मूर्ति मिली है जो कम ही देखने को मिलती है पुरातत्व विभाग की टीम ने धनेश्वर नाथ मंदिर का भी अध्ययन किया था अति प्राचीन काल का बताया ।सभी ऐतिहासिक तत्वों का उल्लेख करते हुए श्री सिंह ने अपने पत्र में आग्रह किया कि शिव भक्तों के द्वारा लाखों रुपए चढ़ावे के रूप में दान दी जाती है जिसका मंदिर कमेटी नहीं होने के कारण कोई लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं रहता है तथा चढ़ावे के पैसे का बंदरबांट होता है धनराशि से ऐतिहासिक बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर का विकास किया जा सकता है। साथ ही श्री सिंह ने जिला पदाधिकारी से आग्रह किया कि मंदिर के विकास हेतु इसे बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद को हस्तांतरित किया जाए। ज़िला पदाधिकारी गोपालगंज द्वारा अपने पत्रांक 3345 एवं दिनांक 22/ 2020 के द्वारा अध्यक्ष बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद को पत्र लिखकर धार्मिक न्यास परिषद के अंतर्गत हस्तांतरित करने का अनुरोध किया है।