पटना(व्हीएसआरएस न्यूज) बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का दो बार सियासी एन्काउंटर हुआ। पहली बार 2009 में हुआ जब वो सेवामुक्त होकर चुनाव लडना चाहते थे। उस समय भी टिकट से वंचित हो गए फिर 9 महिने बाद दोबारा अपनी नौकरी में आ गए। एक बार फिर सियासत की दुनिया में किस्मत आजमाने निकले पांडेय का एन्काउंटर हुआ और नीतिश ने उनको पार्टी में शामिल तो कराया लेकिन टिकट नहीं दिया। हजारों शुभचिंतकों का फोन आने से गुप्तेश्वर पांडेय इन दिनों बेहद परेशान है। अपमान और छिछालेदर होने से खुद को घर में कैद कर लिए है।
हलांकि पांडेय चुनाव लडना चाहते थे लेकिन राजनीति मैदान में उतरने से पहले चारो खाने चित्त हो गए। अपने शुभचिंतकों को फेसबुक पर भावुक पोस्ट लिखकर समझाने मनाने का काम कर रहे है।जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखने वाले गुप्तेश्वर पांडेय एक बार फिर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते रह गए। ऐसा नहीं है कि गुप्तेश्वर पांडेय चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, शायद की कोई ऐसा जिला हो जहां से लोगों ने उनसे अपने यहां से चुनाव लड़ने की मांग नहीं की हो, रोज हजारों की संख्या फोन कॉल आ रहे है,लोग खुद आकर उनसे अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कह रहे है।
कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहरता है और बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के खाकी छोड़ खादी पहनने के मामले में भी इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। 2009 में वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले गुप्तेश्वर पांडेय भाजपा से टिकट नहीं जुटा सके थे और तकरीबन नौ महीने बाद वापस नौकरी में लौट आए थे। सुशांत सिंह मौत के बाद अपने बयानों देश भर में सुर्खियों में आए फिर विधानसभा चुनाव की तरीखों के एलान से ठीक पहले बिहार डीजीपी का पद छोड़कर वीआरएस लेने वाले गुप्तेश्वर पांडेय एक अदद टिकट का जुगाड़ नहीं कर सके है ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि क्या बिहार के ङ्गरॉबिनहुडफ पांडेय जी सियासी एनकाउंटर के शिकार बन गए।