Pune News पुणे(व्हीएसआरएस न्यूज) छोटे देशों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र होता है, लेकिन अप्रत्यक्ष लोकतंत्र होने के कारण जनता द्वारा चुने गए सदस्य संसद में होते हैं। देश में पार्टी सिस्टम हमारे लोकतंत्र की आत्मा है। जैसा कि अयाराम गयाराम मनोवृत्ती बढ़ रहा है, दल-बदल पर प्रतिबंध लगाने वाला 52वां संविधान संशोधन अधिनियमित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट को सबसे पहले शिवसेना के बागी सोलह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेना होगा। कानूनी विशेषज्ञ उल्हास बापट ने कहा कि नियमों के मुताबिक सभी विधायकों को एक साथ बाहर आना चाहिए, लेकिन वे एक-एक कर ऐसा करते रहे हैं, इसलिए यह कानून के मुताबिक नहीं होगा। उल्हास बापट ने यह भी कहा है कि 16 पहले गए थे ताकि डिस्क क्वालिफाई हो जाए, और बाकी भी डिस्क्वालिफाई हो जाएं।
बाहर आने वाले लोग कह रहे हैं कि हम शिवसेना हैं, यह बहुत ही हास्यास्पद विषय है। असली शिवसेना कौन सी है, यह पार्टी में तय होना है, यह विधानसभा में तय नहीं हो सकता है। असली शिवसेना कौन है? यह चुनाव आयोग ही तय करेगा। इसके हिसाब से चुनाव आयोग को भी यह अधिकार है कि वह चुनाव चिन्ह किसे दें। बापट ने यह भी कहा है कि उन्हें नहीं पता कि मामले को सात सदस्यों की पीठ के पास क्यों भेजा जा रहा है। बापट ने कहा है कि पांच लोगों का जो फैसला होगा वह महाराष्ट्र के लिए बाध्यकारी होगा, लेकिन वही फैसला अगर सात लोगों का होगा तो वह देश के लिए बाध्यकारी होगा।
तारिख पे तारिख..अब 14 फरवरी नई तारिख
शिंदे बनाम ठाकरे के बीच सत्ता संघर्ष का फैसला 7 जजों की बेंच (सुप्रीम कोर्ट) के पास जाएगा या नहीं, इस पर 14 फरवरी को फैसला होगा। इसलिए अगले महीने इस बात पर फैसला लिया जाएगा कि महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट की मशक्कत कैसे सुलझेगी। इस बीच शिवसेना सांसद संजय राउत ने कमेंट किया कि संविधान पर हमेशा भरोसा है। संविधान पीठ इसे लगातार सुनेगी, वेलेंटाइन डे प्यार का दिन है, सब कुछ प्यार से किया जाएगा।
कोर्ट में आख़िर हुआ क्या?
आज की सुनवाई में ठाकरे गुट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि सात जजों की बेंच की जरूरत क्यों है। उन्होंने नबाम रेबिया मामले का सबूत दिया। इस पर कोर्ट ने जनवरी के तीसरे सप्ताह में सुनवाई की अनुमति दे दी। लेकिन महाधिवक्ता ने पूछा कि क्या यह सुनवाई 14 फरवरी के बाद हो सकती है। जस्टिस शाह ने कहा कि कपिल सिब्बल के मुताबिक, 14 फरवरी एक बहुत ही शुभ दिन है, इसलिए आप सभी को यहां रहने के बजाय घर पर ही रहना चाहिए। उस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम 14 फरवरी को महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष सुन सकते हैं, जिसके बाद असम मामले की सुनवाई होगी। इस पर शिंदे गुट के वकील हरीश सालवे ने कहा कि हमें देखना होगा कि ठाकरे गुट का मुद्दा कब तक टिकता है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई की अगली तारीख की घोषणा करते हुए कहा कि वह 14 फरवरी को सुनवाई करेंगे।
ठाकरे समूह क्यों चाहता है 7 जजों की बेंच?
इस मामले की जड़ यह है कि क्या पीठासीन अधिकारी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लंबित होने पर उसे आगे बढ़ने का अधिकार है या नहीं। इस फैसले में कहा गया है कि पीठासीन न्यायाधीश के पास अविश्वास प्रस्ताव के लंबित रहने के दौरान कार्रवाई करने की कोई शक्ति नहीं है इस फैसले के आधार पर शिंदे गुट कह रहा है कि उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल को अयोग्यता के संबंध में कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन अरुणाचल और महाराष्ट्र के मामले में संदर्भ और आयाम अलग हैं, इसलिए ठाकरे समूह की मांग है कि निर्णय का विश्लेषण किया जाना चाहिए और बिना जल्दबाजी में व्याख्या किए दिया जाना चाहिए। सत्ता संघर्ष का यह मामला 20 जनवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट में आया। फिर हम अब 2023 में हैं। छह माह बीत जाने के बाद भी इस मामले में अभी तक कोई फैसला, आदेश नहीं आया है। सिर्फ बेंच बदली हैं। ऐसे में अब हम यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 14 फरवरी को क्या होगा।