पुणे (व्हीएसआरएस न्यूज) हर वर्ष की तरह देहू से संततुकाराम महारज और आलंदी से संत ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी लाखों भक्तों के संग अपने विठ्ठल से मिलने पंढरपुर जा रही है। यह पालकी 29 जून को पंढरपुर पहुचेगी,वहीं भगवान और भक्तों का अद्भूत मिलन होगा। इसी दिन पंढरपुर में भब्य मेला लगेगा। दूर दराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान विठोबा-रुक्मणि के दर्शन के लिए आएंगे।
श्रीकृष्ण को ही विठोबा कहते है
प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। यहां पर एक भव्य मेला भी लगता है। पंढरपुर नामक जगह महाराष्ट्र में है जहां भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित मंदिर है। यहां श्रीकृष्ण को विठोबा कहते हैं। यह हिन्दू मंदिर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है। पंढरपुर का विठोबा मंदिर पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है।
कब लगेगा पंढरपुर का मेला
प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में मेला लगता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मेला 29 जून 2023 को लगेगा। लोग दूर दूर से यात्रा करते हुए यहां आते हैं। भगवान विष्णु के अवतार विठोबा और उनकी पत्नी रुक्मणि के सम्मान में इस शहर में वर्ष में 4 बार त्योहार मनाने एकत्र होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में फिर क्रमश: कार्तिक, माघ और श्रावण महीने में एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।
क्या है मान्यताएं ?
पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है।
देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही ’वारी देना’ कहते हैं।
भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं।
इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं।
इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।