Pcmc News पिंपरी(व्हीएसआरएस न्यूज) आपने अकसर सुना होगा हार्ट का डॉक्टर, दांतों का डॉक्टर, बच्चों का डॉक्टर या जानवरों का डॉक्टर, लेकिन ’भिखारियों का डॉक्टर’ शायद ही कभी सुना हो। अभिजीत सोनावाने को लोग भिखारियों का डॉक्टर बुलाते हैं। वे बीएएमएस हैं। उनकी इस खास पहचान की वजह है उनका भिखारियों के प्रति सेवा और समर्पण भाव।डॉ.अभिजीत सोनावणे पिछले 9 साल से फुटपाथ, रेलवे स्टेशन और पूजास्थलों के बाहर बैठने वाले भिखारियों का इलाज कर उन्हें बेहतर जिंदगी दे रहे हैं। जब उन्होंने यह काम शुरू किया, तब वे एक इंटरनैशनल संस्था में महाराष्ट्र के प्रमुख थे और 5 लाख रुपये महीने कमा रहे थे। लेकिन एक रोज एक बाबा की बात याद आ गई, जिसने उनके आगे के जीवन की पूरी दिशा बदल दी। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और भिखारियों का जीवन संवारने में अपना जीवन लगाने का फैसला कर लिया। डॉ. सोनावणे 2015 से लगातार पुणे और चिंचवड़ में घूम-घूमकर भिखारियों का उपचार कर रहे हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराते हैं। साथ ही उन्हें भीख मांगना छोड़कर कुछ काम कर पेट पालने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
165 लोगों ने छोड़ दिया भीख मांगना
डॉ. अभिजीत सोनावाने ने बताया कि उन्होंने 2015 में सोशल हेल्थ ऐंड मेडिसिन (सोहम) ट्रस्ट की शुरुआत की थी। वे कहते हैं कि जो लोग मेरे काम को जानते हैं या मुझे रोज सेवा करते देखते हैं, वही मेरे दानदाता भी हैं। मेरी लोगों से अपील है कि भिखारियों को भीख न दें, बल्कि उन्हें स्वावलंबी बनाएं।
बाइक से घूमकर करते हैं भिखारियों का इलाज
डॉ. सोनावाने 15 दिन में पुणे और चिंचवाड़ की 60 जगहों पर बाइक से घूमकर करीब 1100 भिखारियों का चेकअप और इलाज करते हैं। भिखारियों को काम मिल सके, इसलिए उन्हें वजन नापने वाली मशीन, सिलाई मशीन जैसी सामग्री खरीद कर देते हैं। डॉ. सोनावाने के प्रयासों के बाद अब तक 165 लोगों ने भीख मांगना छोड़ दिया है। उनकी संस्था ’सोहम’ की मदद से भिखारियों के 52 बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया जाता है।
पत्नी के सहयोग के बिना संभव नहीं था
डॉ. सोनावणेद्वारा किए जा रहे नेक कामों में उनकी पत्नी डॉ. मनीषा सोनावणे का भी अहम योगदान है। डॉ. सोनावणे कहते हैं, ’मेरी पत्नी के सहयोग के बिना मैं यह काम नहीं कर सकता था। वह एक क्लीनिक चलाती हैं और योग सिखाती है, उसी से हमारा घर चलता है। अपने रोजमर्रा के काम से समय निकाल कर वह भी सेवा के लिए आती हैं।’
कभी लेते थे सिर्फ 5 रुपये फीस
डॉ. अभिजीत सोनावाने एक मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं। उनके माता- पिता ने कड़ी मेहनत कर उन्हें पढ़ाया है। उन्होंने बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की पढ़ाई की, लेकिन क्लीनिक खोलने के लिए पैसे नहीं थे। बकौल डॉ. सोनावाने, ’मेरे एक परिचित ने कहा कि होम सर्विस का जमाना है, घर-घर जाकर मरीजों का चेकअप करो। मैं 1999 में पुणे के आसपास के गांवों में जाकर घरों में पूछता था कि किसी की तबीयत तो खराब नहीं है। उस समय मैं 2 से 3 बैग लेकर घूमता था, जिसमें मेडिकल का समान होता था। लोग बहरूपिया समझकर अंदर तक नहीं आने देते थे। उस समय मैं 5 रुपये फीस लेता था। 12 घंटे काम करने के बाद भी मुश्किल से 50 रुपये कमा पाता था। मेरा मनोबल टूट रहा था। तभी एक बाबा मुझे मिले, उन्होंने मुझे राह दिखाई। उन्होंने कहा, ’पैसे कमाने से ज्यादा जरूरी एक अच्छा इंसान बनना है।’ यह बात मेरे दिमाग में रही।
बाबा की बात हमेशा रही याद
मुझे नौकरी मिल गई और तरक्की होती चली गई। जिस इंटरनैशनल कंपनी के लिए मैं काम करता था, उसका महाराष्ट्र का प्रमुख बन गया। पांच लाख रुपये मासिक आय थी। मैंने पैसे तो कमा लिए थे, लेकिन बाबा की बात हमेशा याद आती रही। आखिरकार, 15 अगस्त, 2015 को मैंने नौकरी छोड़ दी और भिखारियों के इलाज में लग गया। मुझे जितने पैसे कमाने थे, मैंने कमा लिए। अब पत्नी की कमाई से घर चलता है। मैं और मेरा परिवार सुकून से जी रहा है। मुझे खुशी है कि मैं किसी के लिए कुछ कर पा रहा हूं।
खोलना चाहते हैं कौशल विकास केंद्र
डॉ. सोनावणे कहते हैं, ’मैं भिखारियों के लिए एक कौशल विकास केंद्र खोलना चाहता हूं। इसमें उन्हें खाना बनाना, सिलाई और अन्य काम सिखाए जाएंगे, ताकि उन्हें कभी भीख मांगकर गुजर-बसर न करना पड़े।’