Mumbai News मुंबई(व्हीएसआरएस न्यूज) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने महाराष्ट्र में स्वतंत्र जातिगत जनगणना कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना कराई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अन्य राज्यों में इस तरह की कवायद से लोगों को लाभ हुआ है। उन्होंने यह मांग मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिख कर की है। भुजबल ने अपने पत्र में कहा है कि बिहार में हाल ही में अलग से जाति आधारित जनगणना शुरू की गई है। तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और कई अन्य राज्यों ने भी ओबीसी जनगणना की है और इसका उपयोग राज्य के विकास के लिए किया है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि जाति आधारित जनगणना की हमारी मांग पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र में भी लंबित है। जनगणना का मामला केंद्र सरकार से संबंधित है।
सरकार को मिलेगा फायदा
पूर्व मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग की अलग से जनगणना कराने में असमर्थता जताई है। इसीलिए राज्य सरकार को बिहार सरकार की तरह ओबीसी की अलग से जनगणना करानी चाहिए। इससे पिछड़ा वर्ग के लिए विकास योजनाएं, कल्याणकारी कार्यक्रम तथा वित्तीय प्रावधान किए जाने में मदद मिलेगी। भुजबल ने कहा कि पिछले कई वर्षों से ओबीसी जनगणना की मांग हो रही है। 1946 में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक ’हू वास शूद्र बिफोर?’ में ओबीसी जनगणना की मांग की गई है। 1955 में कालेलकर आयोग और 1980 में मंडल आयोग ने भी अलग ओबीसी जनगणना की सिफारिश कर चुका है।
2011-14 के बीच हुई थी जनगणना, क्या हुआ?
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से आने वाले एक प्रमुख नेता व पूर्व मंत्री भुजबल ने कहा कि 2010 में संसद सदस्यों समीर भुजबल, गोपीनाथ मुंडे और 100 अन्य सांसदों ने लोकसभा में जाति-आधारित जनगणना पर एक प्रस्ताव पेश किया था। उन्होंने कहा कि इसके बाद 2011 से 2014 के बीच ग्रामीण व शहरी परिवारों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को लेकर एक जनगणना की गई थी, लेकिन केंद्र ने अभी तक उसके निष्कर्षों का खुलासा नहीं किया है।
’सटीक आंकड़ों की जरूरत’
भुजबल ने कहा कि अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की जनगणना पिछले 150 वर्ष से की जा रही है और इन वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित अलग से बजटीय आवंटन होता है। उन्होंने कहा कि जातियों के बारे में सटीक आंकड़ों की जरूरत है।