दिल्ली| व्हीएसआरएस न्यूज: हम भारतीय पर्यावरण और जैव विविधता को हो रहा नुकसान समझने के लिए करीब तीन गुना ज्यादा गूगल सर्च और अध्ययन कर रहे हैं। पौधों व प्राणियों की खत्म होती प्रजातियों के बारे में दो गुना ज्यादा चिंता करने लगे हैं। प्रकृति को कम नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों की खोज भी पिछले पांच सालों में करीब 71% बढ़ चुकी है।
इसको लेकर वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की इकोनामिक इंटेलिजेंस यूनिट ने नए शोध में किए हैं। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के परिप्रेक्ष्य में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 2016 से 2020 के बीच पर्यावरण को लेकर चिंता जताने वाले नागरिकों की संख्या 16% बढ़ी है। विकासशील देशों में नागरिक ज्यादा सचेत होने लगे हैं। इसे ‘इको अवेकनिंग’ नाम दिया गया है। उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र तबाह होने के परिणाम समझ आ रहे हैं।
डिजिटल एक्टिविज्म बढ़ा
हालाँकि ट्विटर पर ही पर्यावरण के मुद्दों पर 65% ज्यादा चर्चा हो रही है। प्रकृति और जैव विविधता जैसे शब्दों का उपयोग तीन करोड़ से बढ़कर पांच हो चुका है।
वही कई राजनेता, धार्मिक नेता और अन्य प्रभावशाली व्यक्तित्व व संगठन इस बारे में बात कर रहे हैं, जिससे 100 करोड़ से ज्यादा लोगों तक पर्यावरण संरक्षण के संदेश पहुंच रहे हैं।
4.80 लाख नागरिकों ने हस्ताक्षर किए।
भारत में प्रकृति से जुड़े विषयों पर 190 % ज्यादा गूगल सर्च।
ट्विटर पर 2016 में 2,32,000 ट्वीट के मुकाबले 2020 में 15,00,000 ट्वीट जैव विविधता विनाश विषयों पर।
आवाज अभियान में 4.80 लाख नागरिकों ने हस्ताक्षर किए।
अखबारों में इन विषयों पर 2016 में 1,33,888 लेख प्रकाशित हुए , 2020 में आंकड़ा 1,68,556 पहुंच गया।
परिणाम अक्तूबर 2020 में नजर आया, जब महाराष्ट्र सरकार ने आरे नामक जंगलों को संरक्षित घोषित किया।
खतरे बरकरार
जागरूकता बढ़ने के बावजूद प्रकृति को लेकर खतरे अभी बरकरार हैं।
अमेजन बेसिन से रोजाना 150 एकड़ वन जलाए और काटे जा रहे हैं।
अगले कुछ दशकों में 10 लाख ज्यादा जीवों की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी।
पृथ्वी पर करीब 80 लाख जीव-जंतुओं की प्रजातियां निवास करती हैं।