भागलपुर। व्हीएसआरएस संवाददाता: हिन्दू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। इस साल सावन की शुरुआत 4 जुलाई 2023 से हो रही है। हम आपको बिहार के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सावन में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि भगवान शिव का त्रिशूल यहीं स्थापित है।
भागलपुर के सुल्तानगंज के उत्तरवाहिनी गंगा तट पर बसे बाबा अजगैबीनाथ की पूजा कर जल भरकर बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाएंगे। पर बाबा अजगैबीनाथ के पुजारी देवघर में बाबा भोलेनाथ पर जलार्पण नहीं करते हैं। वो देवघर भी इस माह में नहीं जाते हैं। इसके पीछे एक रोचक कहानी है। हम सभी जानते हैं की सावन आते ही अजगैबीनाथ में प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु जल अर्पण करने पहुंचते हैं. हजारों वर्ष पुराने इस मंदिर के कई किस्से हैं।
अजगैबीनाथ मंदिर के ऊपर लगा ध्वज 1885 का है
मंदिर के मठाधीश महाराज प्रेमानंद गिरि ने बताया कि इस मंदिर के ऊपर लगा ध्वज 1885 का है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे पूर्व का ही यह मंदिर होगा। उन्होंने बताया कि इस मंदिर के ध्वज को रानी कलावती ने दान स्वरूप दिया था। इस मंदिर में दो शिवलिंग है। ऐसा कहा जाता है की हजारों वर्ष पूर्व दो ऋषि मुनि जल लेकर रोज देवघर बाबा को जल अर्पण करने जाते थे, जब भगवान शिव प्रसन्न हुए तो उन दोनों ऋषि मुनि की परीक्षा लेने बीच रास्ते में प्रगट हो गए और उनसे जल पीने के लिए मांगने लगे।
उन दोनों ने बताया कि यह जल बाबा को अर्पण करने हेतु ले जा रहे हैं। हम आपको नहीं दे सकते हैं। बाबा बैद्यनाथ तब उनको अपना दर्शन दिए और उन्होंने कहा कि आज से तुम दोनों जल लेकर यहां नहीं आना। तुम दोनों जाओ वहां तुमको दो शिवलिंग मिलेगा दोनों अपने अपने शिवलिंग की पूजा करना। मैं श्रृंगारी पूजा से पूर्व सुल्तानगंज में रहूंगा। उसके बाद मैं वैद्यनाथ चला आऊँगा। तब से ऐसी मान्यता है कि सरकारी पूजा से पूर्व जितने भी जल बाबा को अर्पण होते हैं वह सीधे देवघर वाले बाबा को जल चढ़ता है. सरकारी पूजा के बाद जल अर्पण करने से बाबा अजगैबीनाथ को वह जल चढ़ता है।
देश-विदेश से श्रद्धालु सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेने पहुंचे हैं। वे पहले अजगवीनाथ के मनोकामना शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। उसके बाद 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर देवघर पहुंचते हैं।
मंदिर के गर्भगृह से सीधे देवघर जाता है रास्ता
मंदिर का इतिहास बहुत पुराना बताया जाता है। प्राचीन ग्रंथों में त्रेता युग में भी इस मंदिर का प्रमाण मिलता है। वहीं, अजगवीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग और गर्भ गृह के बगल से एक रास्ता निकला है, जो सीधे देवघर जाता है।
दंतकथाओं के अनुसार, पहले यहां के पुजारी पूजन के बाद यहां से गंगाजल लेकर देवघर के लिए इसी मार्ग से निकलते थे। यहां के महंत बाबा बैधनाथ के अभिषेक के लिए प्रत्येक दिन गंगाजल लेकर जाते थे।
यहां के महंथ नहीं जाते हैं देवघर
हालांकि इसमें सबसे खास बात यह है कि अजगैबीनाथ के महंथ कभी भी जलार्पण करने देवघर नगरी नहीं जाते हैं। कहा जाता है कि जो भी जल लेकर बाबा की नगरी जाना चाहते हैं उनके साथ कोई ना कोई समस्या जरूर हो जाती है। मठाधीश प्रेमानंद गिरी ने बताया कि मैंने भी जल लेकर वहां जाना चाहा था। मेरे आंखों में समस्या हो गई। उसके बाद क्षमा मांग कर मैं कभी भी वहां नहीं गया. इसके साथ ही इनकी कई खास बातें जुड़ी हुई है।
यह नाव के आकार पर बसा एक मंदिर है
आपको बताते चलें कि यह मंदिर ग्रेनाइट पत्थर पर बसा हुआ एक मंदिर है। जो बिहार का एक अद्भुत मंदिर माना जाता है। पूरी तरीके से यह नाव के आकार पर बसा एक मंदिर है। ऐसी भी मान्यता है कि यह पूरी तरीके से मनोकामना शिवलिंग है।
जो भी बाबा से सच्चे मन से अपनी मनोकामना को मांगते हैं उनकी वह इच्छाएं पूरी होती है। पहले यह गंगा के बीचों बीच हुआ करता था। लेकिन गंगा दूर होने से अब यह मंदिर निकल गया है।