National News नई दिल्ली (व्हीएसआरएस न्यूज) राम की नगरी में राम नाम की गूंज है। रामलला की ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा से पहले राम नगरी में उत्सव सा माहौल है। तैयारियां जोरों पर हैं। नया नेवाल एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन, सड़के हों या बस स्टैंड सब संवर रहे हैं और सजाए जा रहे हैं। चौराहों-दीवारों पर देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी जा रही हैं। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां पहुंचकर 22 जनवरी के ऐतिहासिक पलों से पहले की झलकियां दे दीं।
प्रधानमंत्री ने अयोध्या के नए एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया। साथ ही प्रोटोकॉल तोड़कर यहां के निषाद परिवार से मिलकर उन्हें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का न्योता भी दिया। मंदिर के उद्घाटन के साथ ही इसमें आम लोग दर्शन के लिए जा सकेंगे। मंदिर बनाते समय इसकी सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है। राम मंदिर कैसा बना है? मंदिर की वास्तुकला कैसी है? इसमें किन सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है? मंदिर की खूबी क्या है?
5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शामिल हुए। इससे पहले तीन दिवसीय वैदिक अनुष्ठान आयोजित किए गए, जिसमें 40 किलोग्राम चांदी की ईंट की स्थापना कर सभी प्रमुख देवताओं को मंदिर में आमंत्रित करने के लिए रामार्चन पूजा की गई। भूमि-पूजन के साथ ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के पहले चरण का आधिकारिक तौर पर निर्माण शुरू हो गया। 18,000 करोड़ रुपये में बनने वाले राम मंदिर के निर्माण का काम एलएंडटी कंपनी को मिला।
मंदिर की वास्तुकला कैसी है?
राम मंदिर को नागर शैली में बनाया जा रहा है। नागर शैली के भीतर समाहित द्रविड़ वास्तुकला की झलक है। मुख्य मंदिर जहां रामलला की मूर्ति रखी जाएगी, वह उत्तर भारत की नागर शैली में है। वहीं, कोनों पर बने चार मंदिर द्रविड़ वास्तुकला से प्रभावित हैं। इसमें रामेश्वरम, तिरूपति और कांचीपुरम में स्थित प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय मंदिरों के तत्व शामिल हैं।दरअसल, भारत में मंदिरों की स्थापना की तीन प्रमुख शैलियां हैं जिन्हें नागर, द्रविड़ और वेसर के नाम से जाना जाता है। नागर उत्तर भारतीय मंदिर की वास्तुकला है। यहां एक पत्थर के चबूतरे पर एक पूरा मंदिर बनाया जाता है जिसके ऊपर सीढ़ियां चढ़ती हैं। दक्षिण भारत के विपरीत, इसमें आमतौर पर विस्तृत चारदीवारी या प्रवेश द्वार नहीं होते। प्राचीनतम मंदिरों में केवल एक शिखर था, लेकिन बाद में कई शिखर आए। गर्भगृह हमेशा सबसे ऊंची मीनार के नीचे स्थित होता है।
वास्तुकला के लिए मशहूर गुजराती परिवार ने बनाया है डिजाइन
राम मंदिर का डिजाइन गुजरात के सोमपुरा परिवार ने तैयार किया है जिसने पहले भी कई बड़े मंदिरों के डिजाइन तैयार किए हैं। इनमें गुजरात का सोमनाथ मंदिर, अक्षरधाम और अंबाजी मंदिर और लंदन का स्वामीनारयाण मंदिर शामिल है। इनकी 15 पीढ़ियां देश विदेश में अब तक 131 से अधिक मंदिर का डिजाइन तैयार कर चुकी हैं। सोमनाथ मंदिर का डिजाइन प्रभाशंकर सोमपुरा ने तैयार किया, जिसके लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।
मंदिर की खूबी क्या है?
एक बार पूरा होने पर राम मंदिर दुनियाभर में वास्तुकला के चमत्कारों में से एक होगा। इसके अलावा यह भारत और दुनियाभर में सबसे बड़ा मंदिर भी होगा। राम मंदिर का गर्भगृह और भी खास और अनोखा है। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोण में है और इसे इस तरह से बनाया गया है कि हर साल रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें गर्भगृह में विराजमान श्रीराम की मूर्ति पर पड़ेंगी। मंदिर की परिक्रमा गोलाई में बनाई गई है। इसके भूतल पर पांच मंडप बनाए गए हैं जिनमें गृह मंडप, कीर्तन मंडप, नृत्य मंडप, रंग मंडप और प्रार्थना मंडप शामिल हैं। फिलहाल मंदिर की पहली मंजिल फर्श और प्रवेश द्वार पूरी तरह से तैयार है। जहां भगवान राम के बाल स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा होगी वह गर्भगृह भी तैयार हो चुका है। दूसरी और तीसरी मंजिल निर्माणाधीन है।
यह कल्पना की गई है कि राम मंदिर एक हजार वर्षों तक भक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ा रहेगा। निर्माण के दौरान मंदिर की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है जो बिना किसी नुकसान के 8 तीव्रता के भूकंप को झेलने में सक्षम है।
मंदिर में किन सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है?
इस भव्य मंदिर के निर्माण में अद्वितीय वास्तुशिल्प योजना शामिल है, जिसमें इसके निर्माण के दौरान किसी भी रूप में लोहे के उपयोग को शामिल नहीं किया गया है। मुख्य मंदिर की इमारत राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र के 4.7 लाख घन फीट वजनी गुलाबी बलुआ पत्थर से बनी है। तख्त 17,000 ग्रेनाइट पत्थरों से बनाए गए हैं जबकि जड़ाई का काम रंगीन और सफेद संगमरमर से किया गया है।
मंदिर के दरवाजे सागौन की लकड़ियों से बनाए गए हैं जो महाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले के जंगलों से आती हैं। इमारत में इस्तेमाल किया गया ग्रेनाइट तेलंगाना और कर्नाटक से आया है, जबकि फर्श सामग्री मध्य प्रदेश से ली गई है। जटिल बलुआ पत्थर की नक्काशी ओडिशा के कुशल मूर्तिकारों द्वारा भारत भर की विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके बनाई गई है।लकड़ी का काम तमिलनाडु के श्रमिकों के साथ आंध्र प्रदेश स्थित एक कंपनी को सौंपा गया था। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से और सोने का काम महाराष्ट्र से मंगाया गया है। मंदिर के काम में एलएंडटी ने लगभग 4,000 श्रमिकों को लगाया, जिसमें राजस्थान और मैसूर के कारीगर और पत्थरों को तराशने वाले स्थानीय पत्थर तराशने वाले भी शामिल हैं।