Up News लखनऊ(व्हीएसआरएस न्यूज) कन्नौज लोकसभा सीट से अखिलेश यादव खुद चुनावी ताल ठोकेंगे। सपा ने इस सीट से दो दिन पहले ही तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन 48 घंटे में ही तेज प्रताप को हटाने की नौबत आ गई। सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने अखिलेश की उम्मीदवारी का ऐलान किया है।
इस लोकसभा चुनाव में यूपी में सबसे ज्यादा चर्चा बार-बार सपा की बदलती लिस्ट और उम्मीदवारों के नाम की है। समाजवादी पार्टी (सपा) ने अभी दो दिन पहले ही कन्नौज लोकसभा सीट से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव को टिकट दिया था जो कि सैफई परिवार से हैं और अखिलेश के भतीजे हैं। तेज प्रताप 24 अप्रैल को कन्नौज सीट से नॉमिनेशन भी दाखिल करने वाले थे, लेकिन अब उनका नामांकन टल गया है। अब खबर है कि सपा ने कन्नौज सीट से उम्मीदवार बदल दिया है। इत्र नगरी की लोकसभा सीट से तेज प्रताप की जगह अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में उतरेंगे। सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने अखिलेश की उम्मीदवारी का ऐलान किया है। रामगोपाल यादव ने कहा कि अखिलेश यादव कन्नौज से ही चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश 25 अप्रैल की दोपहर कन्नौज सीट से नामांकन करेंगे।
सपा इससे पहले बदायूं, मेरठ, मोरादाबाद, मिश्रिख, गौतमबुद्ध नगर सीट से भी उम्मीदवार बदल चुकी है। अब कन्नौज से उम्मीदवार बदलने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये उठ रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के रण में कन्नौज सीट से क्यों अखिलेश यादव को खुद उतरना पड़ रहा है और क्यों तेज प्रताप को उम्मीदवारी के ऐलान के 48 घंटे के भीतर ही हटाने की नौबत आ गई?
क्यों आई तेज प्रताप को हटाने की नौबत ?
सपा ने कन्नौज सीट से अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप यादव को टिकट दिया था। तेज प्रताप की उम्मीदवारी के ऐलान के बाद से ही सपा की लोकल यूनिट इस फैसले के विरोध में उतर आई। कन्नौज के सपा नेताओं का एक डेलिगेशन पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से मिलने पहुंच गया। सपा नेताओं के डेलिगेशन ने अखिलेश को कार्यकर्ताओं की नाखुशी से अवगत कराया और यह मांग दोहराई कि इस बार के चुनाव में वह खुद उतरें। लोकल लेवल पर सपा के कार्यकर्ता तेज प्रताप की उम्मीदवारी पर नाखुशी जताते हुए यह भी तर्क दे रहे थे बड़ी आबादी ने तेज का नाम तक नहीं सुना है। लोकल नेता किसी भी सूरत में पार्टी की स्थिति कन्नौज से कमजोर होने देने का मौका नहीं चाहते।
रामपुर की कहानी न दोहरा दी जाए?
स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं की नाराजगी और लोकल लेवल से मिले इनपुट के बाद अपना गढ़ रहे कन्नौज को लेकर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी। इसीलिए तेज प्रताप को हटाने की नौबत आई। लोकल यूनिट की नाराजगी के साइड इफेक्ट्स आजम खान के गढ़ रामपुर में देख चुकी है। रामपुर में सपा के कई नेताओं ने पार्टी उम्मीदवार की बजाय बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान कर दिया था। अब रामपुर में टिकट को लेकर लोकल नेताओं की नाराजगी का इम्पैक्ट कितना होता है, यह तो नतीजों से ही पता चलेगा लेकिन कहा जा रहा है कि अखिलेश अब सतर्क हो गए हैं और इसीलिए सपा कई जगह टिकट का ऐलान करने के बाद दो से तीन बार तक उम्मीदवार बदल दे रही।
अखिलेश के उतरने के पीछे रणनीति क्या?
सपा नेताओं को यह उम्मीद है कि अखिलेश के मैदान में आने से यादव-मुस्लिम मतदाता गोलबंद होंगे ही, पार्टी को हर जाति-वर्ग से मुलायम के इमोशनल कनेक्ट का लाभ भी मिल सकता है। अखिलेश इस सीट से एक उपचुनाव समेत लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं और वह इस सीट के लिए नए नहीं हैं।
क्या है कन्नौज का जातीय गणित?
कन्नौज लोकसभा सीट के जातीय-सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य सीट है और यहां के समीकरण सपा के लिए मुफीद रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल करीब 18 लाख मतदाता हैं जिनमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिलाएं शामिल हैं। कन्नौज में करीब 16 फीसदी मुस्लिम, करीब-करीब इतने ही यादव और 15 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। करीब 10 फीसदी राजपूत और 39 फीसदी अन्य जाति-वर्ग के मतदाता हैं जिसमें बड़ा हिस्सा दलित वोटर्स का है।