पटना(व्हीएसआरएस न्यूज) बिहार का सबसे बडा दलित चेहरा केंद्रिय मंत्री रामविलास पासवान का चुनावी संग्राम के ऐन वक्त पर जाना जदयू के सियासी गणित को बिगाडने का काम करेगा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि करीबन 5 जिलों में असर पडेगा और नीतिश कुमार की पार्टी जदयू को भारी नुकसान की ओर ले जाएगा। बता दें कि पासवान की पार्टी राजग से अलग होकर चुनाव लड रही है। मजेदार बात यह है कि जदयू के उम्मीदवारों के सामने रालोप उम्मीदवार खडा की है जबकि भाजपा के उम्मीदवारों के सामने नहीं खडा की। इसका अर्थ है कि जदयू को भारी नुकसान और भाजपा को फायदा। पासवान के मौत के आंसू 5 जिलों में सियासी समीकरण बिगाड सकते है। ऐसा जानकारों का मानना है।
समस्तीपुर,खगड़िया,जमुई,वैशाली और नालंदा में महादलित वोटों की अच्छी खासी आबादी है। इन जिलों में करीबन 30 सीटें है जहां महादलित वोटों की तादाद निर्णायक भूमिका में है। बिहार में 16 फीसदी महादलित वोट है। खगडिया में अकेले 4 लाख वोट दलितों के है।
समस्तीपुर से रामविलास के भतीजे हैं सांसद
समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में महादलित वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख के करीब है। यहां से रामविलास पासवान के भतीजे प्रिंस राज सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। छह में कल्याणपुर और रोसड़ा सुरक्षित सीटें हैं। रोसड़ा से रामविलास पासवान भी कभी चुनाव लड़ सकते हैं। इन दोनों सीटों पर महादलित वोट काफी मायने रखते हैं। कल्याणपुर सुरक्षित सीट जेडीयू के खाते में चल गया है। यहां से उम्मीदवार महेश्वर हजारी हैं। एलजेपी ने भी इस सीट पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। ऐसे में जेडीयू को यहां नुकसान संभव है। वहीं, रोसड़ा बीजेपी के खाते में गया है। बीजेपी के खिलाफ एलजेपी ने कोई उम्मीदवार नहीं दिया है, तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
हाजीपुर से भाई हैं सांसद
रामविलास पासवान खुद हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं। 2019 में उनके भाई पशुपति कुमार पारस यहां से चुनाव लड़े। हाजीपुर में भी करीब साढ़े तीन लाख से ज्यादा दलित वोटरों की संख्या है। इस संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा सीट आता है। जिसमें हाजीपुर, महुआ, राजापाकर, जंदाहा, महनार, पातेपुर और राघोपुर विधानसभा क्षेत्र आता है। राजापाकर सुरक्षित सीट है और यह जेडीयू के खाते में गया है। इस सीट पर एलजेपी ने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में यहां भी जेडीयू को नुकसान की संभावना है। साथ ही दूसरे सीटों पर भी दलित वोटरों का असर है।
खगड़िया है रामविलास पासवान का घर
खगड़िया लोकसभा सीट पर भी एलजेपी का कब्जा है। रामविलास पासवान खगड़िया के अलौली सीट से ही राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। पहली बार वह इसी सीट से विधायक बने थे। खगड़िया में दलित वोटर करीब 4 लाख के करीब हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें सिमरी बख्तियारपुर, हसनपुर, अलौली, खगड़िया, बेलदौर और परबत्ता है। अलौली सुरक्षित सीट है। इस पर जेडीयू ने उम्मीदवार दिया है। ऐसे में पासवान की पार्टी भी इस सीट से उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। पासवान की सहानुभूति लहर में यहां सीधा नुकसान जेडीयू को ही होगा। बाकी सीटों पर महादलित निर्णायक भूमिका में तो नहीं हैं, लेकिन जिसके साथ चले जाएं, वह मजबूत जरूर हो जाता है। खगड़िया लोकसभा सीट के 6 में से 4 सीटें जेडीयू के खाते में गई है।
जमुई से हैं चिराग पासवान सांसद
जमुई लोकसभा क्षेत्र भी सुरक्षित सीट है। यहां से रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधनासभा क्षेत्र आता है। जिसमें जमुई जिले का 4 है। जमुई जिले की 2 सीटें जेडीयू के खाते में गई है। झाझा और चकाई, चिराग ने दोनों ही सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। झाझा से रविंद्र यादव को टिकट दिया है और चकाई से संजय कुमार मंडल को दिया है। दलित वोटों के साथ-साथ चिराग ने यहां अतिपिछड़ी जातियों के वोट में सेंधमारी की कोशिश की है। साथ में सहानुभूति फैक्टर अलग काम करेगा। इसका सीधा नुकसान जेडीयू को ही संभव है।
बिहार में रामविलास पासवान दलितों के इकलौते बड़े नेता थे। लोकसभा के लिए बिहार में सुरक्षित सीटों पर पासवान परिवार का ही कब्जा है। बिहार के 5 जिलों में दलित वोटर एक बड़े फैक्टर के रूप में काम करते हैं। पासवान के निधन से एक सहानुभूति की लहर है। जिसका फायदा राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी को हो सकती है। क्योंकि उनके बेटे चिराग पासवान पहले से ही बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।