पटना । व्हीएसआरएस न्यूज: वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण मार्च महीने से ही पटना हाईकोर्ट का काम काफी धीरे हो गया है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से चल रही अदालती कार्यवाही से अधिकांश लोग असंतुष्ट हैं। कानूनी पेचीदगी में फंसे लोग काफी कठिनाइयों का सामना कर रहे है, जिन्होंने हाईकोर्ट में मामले दर्ज किए हैं, उन्हेंं नहीं पता कि कब तब सुनवाई होगी। कार्यवाही लेट होने के वजह से वकील परेशान है। उन्हेंं अक्सर पीडि़त पक्षों की खरी-खोटी सुननी पड़ रही है। मुवक्किलों को लगता है कि वकील उन्हें उल्टा-सीधा पढ़ा रहे हैं। दर्जनों मुवक्किल गलतफहमी में वकीलों से अपनी फाइल भी लौटा कर ले जाते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरे वकील ज्यादा प्रभावशाली हैं।
हाईकोर्ट में प्रतिदिन लगभग चार से पांच सौ केस फाइल होते हैं, लेकिन सुनवाई 10 फीसद भी नहीं हो पा रहा है। अदालत में केवल जमानत से संबंधित 10 हजार से ज्यादा मामले लंबित हो गए हैं। शेष सिविल किस्म के मामले हैं। फिलहाल यह स्थिति है कि जो बेल के मामले अगस्त और सितंबर में दाखिल किए गए हैं उसका अभी तक नंबर तक नहीं मिल पाया है।
हाईकोर्ट में परंपरा थी कि जिस मामले की सुनवाई जल्दी करानी है, उसे बेहद जरूरी बताया जाता था, जिसके बाद संबंधित जज प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करते थे, लेकिन अब ज्यादातर मामलों को प्राथमिकता नहीं मिलती है। जल्दबाजी में सुनवाई करने का तरीका भी बदल गया है। अब वैसे अभियुक्तों के लिए भी मुसीबत है जो छोटे-छोटे अपराध में जेल चले गए हैं और उन्हेंं निचली अदालत द्वारा जमानत नहीं दी गई है। उनकी भी प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई नहीं हो सकती है।
इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 27 मई से 29 सितंबर तक प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई के लिए 36,651 आवेदन आए। इसमें 23,166 को ही अस्वीकार किया गया। वही वरीय अधिवक्ता एवं वकीलों के प्रतिनिधि योगेश चंद्र वर्मा बताते हैं कि भले ही अब हाईकोर्ट में जजों की संख्या घटकर 22 हो गई है लेकिन वर्चुअल केस की सुनवाई में जज 20-25 केस से ज्यादा सुनवाई नहीं कर पाते हैं, जबकि पहले जज फेस टू फेस 100 ज्यादा केस की सुनवाई पूरी कर लेते थे।
आपको बताते चले की बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने बताया कि जजों की घटती हुई संख्या एवं पर्व- त्योहारों को लेकर हाईकोर्ट में हो रहे अवकाश ने बड़ी मुसीबत पैदा कर दी है। यहां तक कि छोटे अपराध में जेल गए अभियुक्त ज़मानत के लिए छटपटा रहे हैं। लंबे समय से इंतजार करना पड़ रहा है। अग्रिम जमानत अर्जी का कोई मतलब नहीं। इनकी चार-पांच महीने से सुनवाई नहीं हो पाई है।