गोपालगंज में भूत-प्रेतों का अनोखा मेला सजता है. अंधविश्वास के चलते लोग मानते हैं कि यहां पर इंसान की शक्ल में भूत घूमते हैं. यहां पहुंचने वाली महिलाएं और पुरुष अजीब हरकतें करते देखे जाते हैं. यह मंदिर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर लक्षवार गांव में स्थित है।
शारदीय नवरात्र के मौके पर लक्षवार धाम में दूर-दराज से हजारों की संख्या में श्रद्वालुओं की भीड़ जुट रही है. कहा जाता है कि यहां आने वाले श्रद्वालुओं पर मां की असीम कृपा प्राप्त होने के साथ ही उनके दुख व रोग भी नष्ट हो जाते हैं. यही कारण है कि ऐतिहासिक लक्षवार धाम को प्रेतबाधा से मुक्ति का धाम भी कहा जाता है।
लक्षवार धाम में नवरात्र के मौके पर यूपी से लेकर बंगाल और नेपाल से लोग माता का दर्शन करने पहुंच रहे हैं. एक माह तक यहां श्रद्धालुओं की ऐसे ही भीड़ रहती है. यहां असहाय पीड़ा से मुक्ति पाने के बाद ही लोग अपने घरों को वापस लौटते हैं. शारदीय नवरात्र पर यहां गजब का नजारा देखने को मिल रहा है। कहीं औरतें जोर-जोर से सिर हिलाती नजर आ रहीं हैं तो कहीं कोई महिला जमीन पर लेटकर प्रेत-आत्माओं से मुक्ति पाने के लिए प्रयास करती नजर आती हैं. ऐसे में इन महिलाओं को ना अपनी कपड़ों की चिंता और ना ही आसपास खड़े लोगों का लाज रहता है. वर्षों से यहां भूतों से पीछा छुड़ाने का मेला जारी है।
मिट्टी के स्पर्श मात्र से शरीर से भाग जाती हैं प्रेत-आत्माएं
ऐसी मान्यता है कि यहां के मिट्टी से स्पर्श मात्र से प्रेत आत्माएं शरीर छोड़ जाती हैं. यहां ललका बाबा द्वारा दिए गये भभूत का भी काफी महत्व रहता है. पूजा-पाठ करने व मिट्टी से लोटने और भभूत खाने पर बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल जाती है. यह धारणा इतनी प्रचलीत है कि बिहार-यूपी के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी काफी संख्या में महिला-पुरुष और बच्चे लक्षवार धाम आते हैं।
तांत्रिकों का साधना स्थल शिवधाम
गोपालगंज जिले के कुचायकोट के जलालपुर बाजार का शिव धाम तांत्रिकों का साधना स्थल माना जाता है. वैसे तो इस शक्ति पीठ पर सालों भर आसपास के जिलें से आए श्रद्वालूओं और बीमारी से पीड़ितों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्र के समय यहां हजारों की संख्या में महिलाएं व पुरुष श्रद्वालुओं की भीड़ जुट रही है. माना जाता है कि इस स्थान पर पहुंचने मात्र से ही देवी की असीम कृपा भक्तों पर शुरू हो जाती हैं. वहीं मानसिक व शारीरिक रोगों से छुटकारा मिलती है।
मंदिर के पुजारी के मुताबिक 1972 में लक्षवार शक्ति पीठ की माता के आदेश पर लक्षवार पिंड से कुछ अंश जलालपुर शिव धाम लाया गया था. इस मंदिर के पास शिव धाम की स्थापना की गयी. इसके बाद से यहां तांत्रिकों के जरिये भूत-प्रेत को शरीर से भगाने का सिलसिला शुरू हो गया।
अंधविश्वास के पीछे गहरी सामाजिक धारणा
हालांकि मनोरोग चिकित्सक एसके प्रसाद बताते हैं कि भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वास के पीछे एक गहरी सामाजिक धारणा होती है, जो लोगों के मन की गहराई में समाई होती हैं. जिससे कुछ लोग इसका गलत फायदा उठाने लगते हैं. यही कारण है कि वर्षों से यहां चली आ रही भूतों से पीछा छुड़ाने का अंधवश्विास का खेल आज भी जारी है।