मुंबई(व्हीएसआरएस न्यूज) बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि लोकतंत्र में एक व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे दूसरों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का लाइसेंस है।
दरअसल,समित ठक्कर की तरफ से दायर एक याचिका पर जस्टिस एस.एस. शिंदे और एम.एस. कार्निक की बेंच सुनवाई कर रही थी। ठक्कर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके मंत्री बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ ट्वीट को लेकर की गई एफआईआर को रद्द करने को लेकर याचिका दायर की है। वीपी मार्ग पुलिस स्टेशन में ठक्कर के खिलाफ अश्लीलता और अपमानित करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है। गुरुवार को उनके वकील अभिनव ने जिरह के दौरान कहा कि संविधान हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह प्रधानमंत्री तक की आलोचना कर सकता है।
ठक्कर की तरफ से किए गए दो ट्वीट को लेकर उन पर यह केस किया गया है। उनके वकील ने कहा कि अभद्र भाषा का मतलब ये जरूरी नहीं है कि वह अश्लील हो। वकील चंद्रचूड़ ने जिरह के दौरान यह भी कहा कि ठक्कर के खिलाफ आईपीसी की दो धाराएं 499 और 500 अपमानित करने को लेकर लगाई गई हैं, लेकिन शिकायत किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से की गई है न की मुख्यमंत्री की तरफ से।
हालांकि,जजों ने कहा कि पब्लिक ऑफिस की मर्यादा को बनाए रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा- आपका मुवक्किल किसी और के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता। हर कोई जानता है कि यह अधिकार उचित नहीं… अगर आलोचना सही है तो जो व्यक्ति पब्लिक ऑफिस पर है उन्हें से स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए। लेकिन, आलोचना अभद्र और अनुचित नहीं होना चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर किसी की आलोचना करना काफी आसान हो गया है। बेंच ने कहा- लोग अब ये सोचते हैं कि अगर वे पीएम या सीएम के खिलाफ पोस्ट करेंगे तो उन्हें पब्लिसिटी मिलेगी। आप जानते हैं कि अब न्यायपालिका में अलग बचा है। महामारी से पहले हमें रोजाना की पत्र मिलते थे।