दिल्ली| व्हीएसआरएस न्यूज : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत होता है। इसे कुछ स्थानों पर जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सुरक्षा और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पुत्र के कल्याण की कामना से यह व्रत रखा जाता है।
गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन के नाम पर ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया है। इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत 29 सितंबर दिन बुधवार को है। हम जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त, पारण एवं जितिया व्रत के महत्व के बारे में।
जीवत्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 28 सितंबर के दिन मंगलवार को शाम के समय 06 बजकर 16 मिनट पर हो शुरू रहा है।इस तिथि का समापन 29 सितंबर को रात के 08 बजकर 29 मिनट पर होगा।उदया तिथि के कारण इस व्रत को 29 सितंबर को रखा जाएगा।29 सितंबर के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और अगले दिन 30 सिंतबर को सुबह उठकर स्नान और पूजा के बाद व्रत का पारण कर सकती है।शास्त्रों के अनुसार, सूर्योदय के बाद का पारण शुभ माना जाता है।मान्यता है कि बिना पारण किए कोई व्रत पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.
जीवत्पुत्रिका व्रत कैसे रखते है
जितिया का व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है।इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं अपनी संतान के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।इस व्रत में सप्तमी के दिन नहाय खाए के बाद अष्टमी से लेकर नवमी तिथि के दिन पारण करती है।सप्तमी तिथि वाले दिन महिलाएं सूर्यास्त के बाद से कुछ नहीं खाती हैं।महिलाएं सप्तमी के दिन नहाए- खाए के बाद से निर्जला उपवास करती हैं और नवमी तिथि को व्रत का समापन करती हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत 2021 पारण
जो भी माताएं इस वर्ष 29 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत रहेंगी, उनको 30 सितंबर दिन गुरुवार को प्रात: स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करना होगा। दोपहर से पूर्व पारण कर लेना उत्तम होगा। सूर्योदय के बाद का पारण अच्छा माना जाता है। पारण किए बिना व्रत पूरा नहीं होता है और उसका संपूर्ण फल भी प्राप्त नहीं होता है ।
पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपने सभी कर्मों से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनर्जीवित कर दिया था। तब से स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं।
माना जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को पूरी आस्था के साथ रखती हैं उनके संतान की रक्षा भगवान कृष्ण करते हैं। इस व्रत के फल स्वरूप संतान को दीर्घआयु, आरोग्य और सुखी जीवन प्राप्त होता है.