अमेरिका ने रूस और चीन को दिया संदेश
प्रो. हर्ष पंत का मानना है कि बाइडन प्रशासन में बर्न्स को बेहद अनुभवी राजनयिक माना जाता हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कतर में शुरू हुई राजनयिक वार्ता का नेतृत्व बर्न्स ने ही किया था। अमेरिका में वह बैक चैनल वार्ताकार के रूप में जाने जाते है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस बार भी यह जिम्मेदार अनुभवी राजनयिक बर्न्स को सौंपी है। बर्न्स काबुल में पहली बार तालिबान के प्रमुख नेताओं से वहां के हालात पर गुप्त चर्चा की।
उन्होंने कहा बर्न्स की इस यात्रा के कई निहितार्थ हो सकते हैं। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ जिस तरह काबुल में चीन और रूस ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है, उससे अमेरिका की चिंता बढ़ी है। बर्न्स की इस यात्रा के जरिए अमेरिका ने यह संदेश दिया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बावजूद वह अमेरिकी हितों के प्रति संजीदा है।
प्राे. पंत ने कहा कि अमेरिका ने तालिबान से कोई कूटनीतिक रिश्तों की पहल किए बगैर यह संदेश दिया है कि वह अफगानिस्तान में अब भी प्रमुख खिलाड़ी है। अमेरिका ने यह कदम तब उठाया है जब चीन और रूस तालिबान के साथ कूटनीतिक रिश्तें बनाने की बात कर रहा है।
उन्होंने कहा कि तालिबान ने जिस तरह से अमेरिक सैनिकों की वापसी को लेकर सख्ती दिखाई है, उससे एक गलत संदेश जा रहा था। ऐसे में अमेरिका ने बर्न्स को काबुल भेजकर तालिबान के शीर्ष नेताओं की वार्ता इस कड़ी के रूप में भी देखा जाना चाहिए। अमेरिका ने इस यात्रा को इसलिए गुप्त रखा क्योंकि अभी तक अमेरिका ने तालिबान हुकूमत को किसी तरह के राजनयिक संबंधों की बात नहीं की है।
दिल्ली| व्हीएसआरएस न्यूज: अफगानिस्तान में तालिबान के सख्त तेवर के बीच अमेरिकी सीआइए निदेशक जे बर्न्स वार्ता के लिए काबुल गए थे। अमेरिकी अधिकारियों ने इस खबर की पुष्टि की है। अधिकारियों की ओर से कहा गया है कि बर्न्स काबुल में तालिबान के शीर्ष नेताओं से व्यक्तिगत बातचीत हुई है। व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद यह किसी अमेरिका शीर्ष अफसर की पहली वार्ता है।
खास बात यह है कि अमेरिकी सीआइए प्रमुख की काबुल यात्रा ऐसे समय हुई है, जब तालिबान अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए है। तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के लिए 31 अगस्त की डेडलाइन है। तालिबान साफ कर चुका है कि जब तक अफगानिस्तान में एक भी अमेरिकी सैनिक रहेगा वह सरकार गठन की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाएंगे। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने तालिबान के इस डेडलाइन को गंभीरता से लिया है। इस घटना को इसी कड़ी के रूप में जोड़कर देखा जा रहा है।
अमेरिकी सैनिकों की वापसी से नहीं जुड़ी है वार्ता
बाइडन प्रशासन की ओर से इस वार्ता को गोपनीय रखा जा रहा है। अमेरिकी सरकार की ओर से बर्न्स की इस यात्रा का कोई विवरण नहीं दिया गया है। बाइडन प्रशासन की ओर से कहा गया है कि इस यात्रा का अमेरिकी सैनिकों की वापसी से कोई संबंध नहीं है। इसमें आगे कहा गया है कि इस यात्रा का मकसद काबुल में अमेरिकी सैनिकों की वापसी या तालिबान के 31 अगस्त के डेडलाइन से भी कोई वास्ता नहीं है।