मांझागढ़। व्हीएसआरएस संवाददाता: पशुओं की देखभाल व ईलाज के लिए सरकार भले ही लाखों करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.
माझा प्रखंड का पशु चिकित्सालय अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यहां सुविधाओं का टोटा है. यह न तो बीमार मवेशियों के ईलाज की समुचित व्यवस्था है. और ना ही अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में दवाइयां उपलब्ध है. जिससे पशुपालकों की परेशानी बढ़ गई है.
सबसे बड़ी परेशानी है कि पशु अस्पताल के एक डॉक्टर रहमत अली दो प्रखंडों के प्रभार में है.जिसके चलते पशुपालकों की और ज्यादा परेशानी बढ़ जाती है. पशुपालक बाहर से तो दवा खरीद लेते हैं. लेकिन डॉक्टर से मुलाकात नहीं होने पर उनकी परेशानी दोगुनी बढ़ जाती है. विभागीय आंकड़ों के अनुसार पूरे प्रखंड में करीब 25000 रजिस्टर्ड पशु है. इनमें कई तरह की बीमारियां होती रहती है. लेकिन प्रखंड स्तर के अस्पताल में जरूरत की दवाइयां उपलब्ध नहीं होने के कारण बीमार पशुओं का ईलाज बेहतर ढंग से नहीं हो पाता है.
पशु अस्पताल में हर माह करीब 300 से लेकर 800 से अधिक पशुओं का इलाज होता है. लेकिन वर्तमान में इलाज के लिए आने वाले पशुपालकों को दवा की कमी के कारण पुर्जा पर दवा का नाम लिखकर भेज दिया जाता है.
इसके कारण पशुपालकों को निजी दवा दुकानों से दवा खरीदने के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ रही है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक पहले 25 से 30 प्रकार की दवा रहती थी लेकिन राज्य मुख्यालय से दवाइयां आवंटित नहीं किए जाने से पशु अस्पताल में मात्र चार से पांच प्रकार की दवा ही उपलब्ध है. प्रखंड में एक एंबुलेंस भी नहीं है. जिसका उपयोग कही शिविर लगाने पर दवा दोने के लिए किया जा सके.
डॉक्टर को झेलनी पड़ती है पशुपालकों की नाराजगी.
प्रखंड पशु अस्पताल के पशु चिकित्सक रहमत अली ने बताया कि यहां प्रतिमाह करीब 800 पशुओं का इलाज के लिए लाए जाते हैं. पशुओं में गला घोंटू , टूल लंगडा, बुखार ,मुंह पका रोग सबसे खतरनाक बीमारी है. इसके लिए साल में दो बार टीकाकरण आवश्यक है. यदि प्रत्येक छह माह पर टिका दिला देते हैं. तो पशु में इन लोगों को छुटकारा पा सकते हैं.