मीरगंज । व्हीएसआरएस संवाददाता: पुत्र के दीर्घायु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए माताएं कल जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत रखेगी। जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें जल, फल या अन्न आदि ग्रहण नहीं किया जाता है। यह कठिन व्रतों में से एक है। इस दिन पूजा के समय गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से जुड़ी पौराणिक कथा सुना जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत कथा या जितिया व्रत कथा भी कहते हैं। इस साल जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत 29 सितंबर यानि कल है।
जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत :
हिन्दू पंचांग के अनुसार 28 सितंबर दिन मंगलवार को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शाम 06:16 बजे से शुरु हो रही है। आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि का समापन 29 सितंबर दिन गुरुवार को रात 08:29 बजे हो रहा है। ऐसे में जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि 29 सितंबर को मान्य है, इसलिए जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत इस दिन ही रखा जाएगा।
कैसे शुरु हुआ जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत:
गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे। उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग की जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था।
पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा। इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत करने से पुत्र दीर्घायु, सुखी और निरोग रहते हैं।
जितिया व्रत की पूजा विधि :
प्रसिद्ध ज्योतिषी व अंक नक्षत्र वेता श्री राजेश नायक कहते हैं इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोषकाल (शाम को) में गाय के गोबर से अपने आंगन को लीपे और वहीं एक छोटा सा तालाब भी बना लें। तालाब के निकट पाकड़ (एक प्रकार का पेड़) की डाल लाकर खड़ी कर दें।
शालिवाहन राजा के पुत्र जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के बर्तन में स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे सजाएं तथा धूप, दीप, चावल, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें।
श्री नायक कहते हैं मिट्टी तथा गाय के गोबर से चिल्ली या चिल्होडिऩ (मादा चील) व सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से सजा दें।
अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए। इसके बाद व्रत की कथा सुनें। अपने पुत्र-पौत्रों की लंबी आयु एवं सुंदर स्वास्थ्य की कामना से महिलाओं को विशेषकर विवाहित महिलाओं को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।