उचकागांव | व्हीएसआरएस संवाददाता: त्रिलोकपुर स्थित नव निर्मित शिव मंदिर में रूद्र महायज्ञ व प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ के तीसरे दिन रविवार को अरनी मंथन से अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। फिर उसी से हवन कुंड में अग्नि स्थापित कर हवन की शुरूआत हुई।
सबसे पहले सुबह आठ से नौ बजे तक गुरु दीक्षा कार्यक्रम हुआ। नौ बजे से दोपहर एक बजे के बीच नौ ग्रह पूजा की गई। इसके बाद भगवान गणेश सहित अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद विभिन्न तीर्थ स्थलों का जल व मिंट्टी हवन कुंड में डाली गई। इस दौरान प्रधान देवता भगवान विष्णु के एक हजार नाम का जप कर उनकी स्तुति की गई। इस मंडप पूजा में सभी देवी देवताओं व पीठों का आह्वान करने के बाद दोपहर सवा तीन बजे अरनी मंथन हुआ।
इससे पहले अग्नि देव का आह्वान किया गया, फिर लकड़ी के दो टुकड़ों को आपस में घर्षण से आचार्य रितु रंजन त्रिपाठी व विजय बाबा, सोनू पांडेय,हरिओम शास्त्री, विकास पांडेय, मनीष शास्त्री, रंजन वैदिक, ओमकार तिवारी, केशव पांडेय, रंजन पांडेय द्वारा अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसे कुंड में स्थापित कर हवन की शुरूआत की गई। दोपहर में भक्तों के लिए विशाल भंडारा का आयोजन किया गया। इसके पूर्व रामलीला में झांकी दिखाई गई।
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क्या है अरनी मंथन :अरनी मंथन को ज्यादातर भक्तों ने पहले कभी नहीं देखा था। उसी वजह से भक्तजन रविवार को यज्ञशाला में उसे देखने बड़ी संख्या में मौजूद रहे। अरनी और मंथा लकड़ी के दो अलग अलग भाग हैं। अरनी को नीचे रख कर उस में बनाए छेद में मंथ के टुकड़े को रखकर फिर मंथा को डोरी की मदद से ऐसे मंथा जाता है, जैसे की छाछ से मक्खन निकालने के लिए किया जाता है।
मंथन से लकड़ी के दोनों टुकड़ों के बीच घर्षण से आग पैदा हो जाती है। उसके बाद फिर अंगारों को रूई व उपलों से झुलसा कर अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। यज्ञ में जिस अरनी मंथा का इस्तेमाल हुआ। उसमें अरनी शमी नाम के उस पेड़ की लकड़ी है, जिस पेड़ में महाभारत में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपने दिव्य अस्त्र वस्त्र छिपाए थे। शमी का पेड़ पिपल के गर्भ से पैदा होता है। जबकि मंथा पिपल की लकड़ी की है।