पटना(व्हीएसआरएस न्यूज) बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नए समीकरण बनने से नतीजे चौंकाने वाले निकल सकते है।राजनीतिक पार्टियां पहले चरण का चुनावी प्रचार आरंभ कर दी है लेकिन गुणा भाग लगाना भी शुरु कर दी है। पासवान की पार्टी का राजग से अलग होने से जेडीयू को सीधा नुकसान हो रहा है। वहीं राजद-कांग्रेस महगठबंधन को सीधा फायदा होता नजर आ रहा है। भाजपा भी फायदे में दिखाई दे रही है। लेकिन भाजपा के बिहारी नेताओं को यह डर सता रहा है कि नीतिश की पार्टी भाजपा के उम्मीदवारों को हराने का काम करेंगे ताकि सीट ज्यादा न मिल सके। जदयू बडे भाई की कुर्सी को गंवाना नहीं चाहेगी ऐसे हालत में महागठबंधन को फायदा होते नजर आ रहा है।
2015 के विधानसभा चुनाव के समय तस्वीर अगल थी। उस समय जदयू महागठबंधन का हिस्सा था। जदयू का वोट राजद-कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ था। इसके साथ मुसलिम और दलित ने भी इन पार्टियों को वोट किया। क्योंकि, 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान से राजद-कांग्रेस और जेडीयू गठबंधन का फायदा मिला।
कांग्रेस-राजद को भी साथ चुनाव लड़ने एक-दूसरे को फायदा मिलता है। क्योंकि, 2010 में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी। कांग्रेस ने सभी 243 सीट पर अपनी किस्मत आजमाई, पर वह सिर्फ चार सीट जीत पाई। वर्ष 2015 में जेडीयू के अलग होने से भाजपा को सीधा नुकसान हुआ। पार्टी सिर्फ 53 सीट जीत पाई, जबकि 2010 के चुनाव में 91 सीट मिली थी।
रणनीतिकार मानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू, भाजपा और लोजपा एक साथ चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। राजद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को एक सिर्फ एक सीट मिली। इन चुनाव में लोजपा भी जेडीयू-भाजपा गठबंधन से अलग है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार चुनाव के नए समीकरण कितना-फायदा नुकसान पहुंचाते हैं।