पटना| व्हीएसआरएस न्यूज: पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि मुखिया या उप मुखिया को हटाने से पहले अगर लोक प्रहरी की संस्तुति नहीं ली गई है तो वैसी कार्रवाई गैर कानूनी होगी। अदालत ने हैरानी भी जताई कि पंचायती राज कानून में लोक प्रहरी की भूमिका होने के बावजूद आजतक इस संस्था का गठन नहीं किया गया। आज भी पंचायती राज संस्थाओं में लोक प्रहरी की अनुशंसा बगैर ही सरकार मुखिया पर कार्रवाई कर रही है।
लोक प्रहरी की अनुशंसा जरूरी
न्यायाधीश डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकलपीठ ने कौशल राय की याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि पद के दुरुपयोग के आरोप पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के आदेश से मुखिया को पदच्युत कर दिया गया। किंतु उक्त कार्रवाई करने में लोक प्रहरी से कोई संस्तुति नहीं ली गई। पंचायती कानून की संशोधित धाराओं में प्रावधान है कि मुखिया/उप मुखिया, प्रमुख को हटाने से पहले लोक प्रहरी की अनुशंसा जरूरी है। एक दशक पहले ही पंचायती राज कानून में ऐसा संशोधन किया गया लेकिन आजतक लोक प्रहरी संस्था का गठन तक नही हुआ! नतीज़ा है कि राज्य सरकार के अधिकारी लोक प्रहरी की शक्तियों को खुद से धारण कर इस्तेमाल कर रहे है| जो गैर कानूनी है। वहीं सरकारी मनमानेपन की बात भी सामने आई।
वही याचिकाकर्ता सीतामढ़ी के डुमरी प्रखंड की बिशुनपुर ग्राम पंचायत के मुखिया थे। उसी प्रखंड के बरियारपुर पंचायत के मुखिया पर ज्यादा गंभीर आरोप होते हुए भी उन्हेंं केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया गया जबकि याचिकाकर्ता को उसके पद से हटा दिया गया। लोक प्रहरी जैसी संस्था के नही होने से अफसरशाही ऐसी मनमानी कर रही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी को मंजूर करते हुए प्रधान सचिव के आदेश को निरस्त कर दिया।