पिंपरी(व्हीएसआरएस न्यूज) सुप्रीम कोर्ट ने समान काम समान वेतन अधिनियम के तहत पिंपरी-चिंचवड़ पालिक के सार्वजनिक शौचालयों की सफाई करने वाले 469 ठेका श्रमिकों को अंतर और ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया है। नेशनल लेबर अलायंस के अध्यक्ष यशवंत भोसले ने कहा कि पालिका ने 469 ठेका श्रमिकों के खातों में 39 करोड़ रुपये जमा किए हैं। संगठन का 20 साल का संघर्ष सफल रहा है। इस ऐतिहासिक परिणाम से देश के लाखों ठेका श्रमिकों को फायदा होगा भोसले ने कासरवाड़ी में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी जानकारी दी। इस समय एड. सुशील मंचरकर,दीपक पाटिल,दिनेश पाटिल,अहमद खान,एफएम चव्हाण,मधुकर काटे,विट्ठल ओझरकर,संजय सालुंके उपस्थित थे।
भोसले ने कहा कि पालिका स्लम उन्मूलन पुनर्वास वास्तुकला,स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के शौचालयों,यशवंतराव चव्हाण स्मृति (वाईसीएम) अस्पताल की सफाई का काम सुलभ इंटरनेशनल,विशाल एंटरप्राइजेज और मैसर्स द्वारा कर रही है। अदालत ने निर्देश दिया कि श्रमिकों के वेतन का भुगतान करने की प्राथमिक जिम्मेदारी ठेकेदारों के पास है और यदि ठेकेदार इस जिम्मेदारी को पूरा करने में असमर्थ है,तो श्रमिकों को नगर पालिका द्वारा भुगतान किया जाना चाहिए। हालांकि पालिका ने इसे लागू नहीं किया। इसके विपरीत पालिक ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। हालांकि शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और इसे खारिज कर दिया और भूगतान करना पडा। ऐसा भोसले ने बताया।
़़श्रमिकों की सूची का सत्यापान
उच्च श्रम आयुक्त शैलेन्द्र पोल ने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार रिकॉर्ड की जाँच की। संघ ने प्रदान किए गए श्रमिकों की सूची का सत्यापन किया। यह काम पर सूची में 469 श्रमिकों पाया गया। इन 469 श्रमिकों को समान काम के लिए समान वेतन के निर्णय के अनुसार ब्याज के साथ अंतर राशि का भुगतान करें कुछ कर्मचारियों की मौत हो गई है। उनके उत्तराधिकारियों के नाम पर चेक का आदान-प्रदान किया जाएगा। उसके बाद शेष श्रमिकों के वारिसों के खाते में पैसा जमा किया जाएगा। संगठन की ओर से वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े,प्रशांत शुक्ला,राजीव पाटिल और विशाल कोलेकर ने सुप्रीम कोर्ट में काम किया। 2001 में मुख्य दावा नितिन कुलकर्णी ने दायर किया था।
20 साल की कानूनी लडाई में मिली सफलता
नेशनल लेबर फ्रंट ने 20 साल तक मजदूरों की लड़ाई लड़ी। उन्हें बड़ी सफलता मिली है। नगर पालिका के 469 सफाईकर्मियों को न्याय मिला है। एक कार्यकर्ता को 9 लाख रुपये से 16 लाख रुपये का अंतर मिला है। यह पहली बार है जब ऐसा निर्णय आजादी के बाद पहली बार आया है। अदालत के आदेश को लागू करके नगरपालिका ने 2004 में अंतर का भुगतान किया होता तो आज निगम ने करोड़ों रुपये बचाए होते। 20 साल की कानूनी लडाई में कई बाधाएं आयी लेकिन आखिर सत्या की जीत हुई।