Maharashtra News मुंबई(व्हीएसआरएस न्यूज) आखिरकार आज महाराष्ट्र सरकार द्वारा पेश किये गए लोकायुक्त विधेयक विधानसभा में पारित कर दिया गया। सोमवार को जब इसे पेश किया गया था तब हंगामे की वजह से इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो पाई थी। इस विधेयक के मुताबिक मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ किसी भी प्रकार की जांच शुरू करने के पहले विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति लेना जांच एजेंसी के लिए अनिवार्य होगा। इसी प्रकार मंत्रियों के खिलाफ जांच का अधिकार राज्यपाल, विधान परिषद सदस्यों के बारे में सभापति और विधानसभा सदस्य के बारे में जांच की अनुमति देने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया है। लोकायुक्त विधेयक 2022 में मुख्यमंत्री के पास भारतीय प्रशासनिक सेवा,भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच को अधिकृत करने की भी ताकत दी गई है।
संबंधित मंत्रियों को भी अन्य अधिकारियों के संबंध में पूछताछ की अनुमति देने का अधिकार मुहैया किया गया है। इस अधिवेशन सत्र की शुरुआत के पहले ही शिंदे-फडणवीस सरकार ने महाराष्ट्र में लोकायुक्त कानून बनाने का निर्णय लिया था। लोकायुक्त विधेयक के मुताबिक वर्तमान मुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री और मंत्री इस अधिनियम के दायरे में आएंगे। उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की माने तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम नए लोकायुक्त अधिनियम का एक हिस्सा होगा।
सीएम होंगे चयन समिति के अध्यक्ष
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति राज्यपाल को लोकायुक्त और चार अन्य सदस्यों के नामों की सिफारिश करेगी। उप मुख्यमंत्री इस समिति के उपाध्यक्ष होंगे। समिति में विधान परिषद के सभापति, विधानसभा के अध्यक्ष, विधानमंडल के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक अन्य न्यायाधीश शामिल होंगे। विधेयक में यह कहा गया है कि लोकायुक्त और सदस्यों के कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के लिए या व्यक्ति के 70 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक, जो भी पहले हो,रहेगा।
सिविल कोर्ट की शक्तियां होंगी
इस विधेयक में विशेष मामलों में सिविल कोर्ट की शक्तियां लोकायुक्त को दी गई हैं। जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को समन करने, उसकी उपस्थिति के लिए बाध्य करने और शपथ पर उसकी जांच करने, किसी भी दस्तावेज की खोज और प्रस्तुत करने की मांग करने, शपथ पर साक्ष्य लेने, किसी भी अदालत या कार्यालय से रिकॉर्ड या प्रतियां मांगने, जांच करने के लिए कमीशन जारी करने की शक्ति लोकायुक्त के पास होगी।
समिति में होंगे चार सदस्य
लोकायुक्त पद के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के या बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश में से किसी का चयन किया जा सकेगा। ऐसा व्यक्ति उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में प्रमुख जिला न्यायाधीश या उसके समकक्ष की नियुक्ति सदस्य के रूप में की जा सकेगी। जबकि वित्त, कानून और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों, लोक प्रशासन, सतर्कता, बीमा, बैंकिंग व्यवसाय संबंधी मामलों में कम से कम 25 वर्ष के अनुभव वाला व्यक्ति नियुक्ति के लिए पात्र होगा।
अपमान करने पर कार्रवाई तय
लोकायुक्त विधेयक में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि उनके सम्मान और प्रतिष्ठा पर आंच न आने पाए। लोकायुक्त अध्यक्ष या सदस्यों का जानबूझकर अपमान करना या कार्य में बाधा डालना, उसे बदनाम करना और संबंधित व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर साधारण कारावास की सजा दी जाएगी। दोषियों को सजा और जुर्माना दोनों की सजा मिलेगी। दोष के अनुसार सजा को छह माह तक बढ़ाया भी जा सकेगा।