पिंपरी(व्हीएसआरएस न्यूज) जब कोरोना का कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ ही नहीं तो पालिक ने अवैध तरीके से बिल का भुगतान आदर्श अस्पताल को कैसे किया। अतिरिक्त आयुक्त अजीत पवार ने स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा करारनामा पर मुहर लगाने के बाद पीछे की तारीख पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल रॉय के वित्तीय अधिकारों को अचानक रद्द कर दिया गया था। किसी अधिकारी समिति सदस्य की अनुपस्थिति में इन बिलों का भुगतान करने के लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. पवन सालवे की सिफारिश की गई थी। इससे स्पर्ष अस्पताल को दिए जाने वाले बिलों के बारे में संदेह पैदा हो गया है। इस मामले में अधिकारी अजीत पवार डॉ रॉय और डॉ.पवन सालवे ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया ऐसा संदेह है। पूर्व विधायक विलास लांडे ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय समिति द्वारा जांच की जाए और दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया जाए। विलास लांडे ने पालिका आयुक्त राजेश पाटिल को इस संदर्भ में एक पत्र लिखा है।
इस संबंध में लांडे ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे,उप मुख्यमंत्री अजीत पवार,स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजेश टोपे के पास शिकायत दर्ज कराई है। इसमें उन्होंने कहा कि बंद अवधि के दौरान कोविड केयर सेंटर चलाने वाले संगठनों को बिलों के भुगतान पर निर्णय लेने के लिए गठित समिति का आदेश दिखाई नहीं देता है। यह उल्लेख है कि समिति की 3 से 4 बैठकें आयोजित की गईं। लेकिन केवल 6 जनवरी 2021 को बैठक संदेहास्पद दिखाई देती है। समिति के सदस्यों को मुख्य लेखा परीक्षक,मुख्य लेखा और वित्त अधिकारी,स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी के हस्ताक्षर होने की उम्मीद थी। हालाँकि, स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रॉय के हस्ताक्षर कहीं नहीं मिले और अतिरिक्त स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सालवे ने समिति के सदस्य के रूप में हस्ताक्षर किए हैं। यह संदेह है कि साल्वे ने अतिरिक्त आयुक्त अजीत पवार के साथ मिलकर बिलों का भुगतान करने की साजिश रची। चिकित्सा अधिकारी डॉ.वर्षा डांगे,लेखा अधिकारी नेरकर,प्रशासन अधिकारी घुले को नियंत्रण अधिकारी के रूप में जिम्मेदारी दी गई है। इसलिए इस मामले में तीनों अधिकारी समान रूप से दोषी हैं। संस्मरण में कहीं भी स्पर्श अस्पताल के बिल का उल्लेख नहीं है। केवल बंद अवधि के दौरान काम करने वाले अस्पतालों ने केंद्रों के बिलों का भुगतान करने के लिए एक समिति नियुक्त की है। हालांकि भले ही स्पर्श अस्पताल के माध्यम से कोई मरीज नहीं थे,लेकिन उन्हें षड्यंत्रपूर्वक भर्ती कराया गया और बिलों का भुगतान किया गया।
बंद अवधि के दौरान बिलों के भुगतान के लिए विभाग द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर आयुक्त की कोई टिप्पणी नहीं है। हालांकि, अपर आयुक्त अजीत पवार ने आयुक्त के साथ चर्चा की। बाकी संस्थान की तरह स्पर्श हॉस्पिटल को बिल का भुगतान करने की सिफारिश की जाती है। यह उल्लेख किया गया है कि मरीजों को स्पर्श अस्पताल के केंद्र में भेजना संभव नहीं था क्योंकि अन्य केंद्रों में बहुत सारे रोगी नहीं थे। हालांकि दस्तावेजों की पूर्ति,आवश्यक जमा राशि का भुगतान न करने, श्रमशक्ति की अनुपलब्धता के कारण रोगी को स्पर्श अस्पताल में नहीं भेजा गया था। साथ ही 25 सितंबर 2020 को भोसरी अस्पताल के प्रमुख द्वारा किए गए निरीक्षण में बताया गया है कि इस स्थान पर कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए, मरीज को वहां नहीं भेजा गया था। लांडे ने बताया कि 1 अगस्त से स्पर्श हॉस्पिटल द्वारा बिल जमा किए गए हैं,जबकि वर्क ऑर्डर 7 अगस्त,2020 को जारी किया गया था। उन्होंने 21 सितंबर,2020 को कर्मचारियों की सूची भी प्रस्तुत की है। कोविड केयर सेंटर की स्थापना के बाद संबंधित संगठन द्वारा कोविड के लिए स्थापित वॉर रूम में अस्पताल को पंजीकृत करना अनिवार्य था। यह पंजीकरण कभी भी स्पर्श अस्पताल के माध्यम से नहीं किया गया है। इसके अलावा वॉर रूम में कोविड केयर सेंटरों की सूची में कभी भी स्पर्श हॉस्पिटल का नाम नहीं था।
किसी भी मरीज को इस सेंटर में भर्ती नहीं किया गया। इसके बावजूद बिल का भुगतान यह दिखाते हुए किया गया है कि मरीज को भर्ती कर लिया गया है। स्पर्श अस्पताल के समझौते पर स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी की मुहर के बावजूद, अजीत पवार ने इसे बैकडेट किया है। उन्हें बिलों के भुगतान के लिए न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करना था। हालांकि, किसी ने भी सबूत नहीं दिया है कि न्यूनतम वेतन का भुगतान किया गया है। वेतन भुगतान के संबंध में कोई बैंक विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है। इन बिलों का भुगतान करने के लिए डॉ. साल्वे द्वारा अनुशंसित कारण,डॉ. रॉय ने स्पर्श अस्पताल के बिलों पर दो फाइलें तैयार की और एक फाइल आयुक्त के समक्ष रखी और दूसरी अतिरिक्त आयुक्त पवार के समक्ष रखी। कमिश्नर को दी गई फाइल में डॉ. रॉय ने एक नोट बनाया और इसे जल निकासी विभाग में एक क्लर्क के हस्ताक्षर के साथ संशोधित किया। इससे डॉ. रॉय और पवार के बीच अच्छी बहस हुई। इसलिए डॉ. रॉय के वित्तीय अधिकार निरस्त कर दिए गए। उसके बाद डॉ. पवन सालवे की सिफारिश पर बिल तैयार किए गए थे।
पूरा मामला विवादास्पद है और वित्तीय हेरफेर का संदेह है। इसलिए इस मामले की उच्च स्तरीय समिति द्वारा जांच की जानी चाहिए। दोषी पाए जाने पर अधिकारी अजीत पवार,डॉ. रॉय और डॉ.पवन सालवे को तत्काल सेवा से निलंबित किया जाना चाहिए।