भारतीय राजनीति में वंश-वृक्ष के सबसे अधिक माली हैं। राजनीति से लेकर खेलों तक,मनोरंजन से लेकर कारोबार तक, संस्कृति से लेकर एनजीओ तक और यहां तक कि धर्मस्थलों, मंदिर, मस्जिद, चर्च पर स्वामित्व और नियंत्रण के लिए भी पीढी दर पीढी वंशवाद की बेल पनपी है। लोकलुभावनों की पहली पंक्ति वाले ये उत्तराधिकारी ही इसके फलों का आनंद ले रहे हैं। वंश एक विशेष जाति है,जिसकी एक खासियत है- संस्थाओं और संगठनों में ऐसे धनी और शक्तिशाली लोगों की संतानों के लिए सार्वजनिक कार्यालयों में विशेष आरक्षण होता है। वंशवाद के लिए किसी विधायी औचित्य की आवश्यकता नहीं होती है। वंशक्रम पर ही सामंतवाद और राजशाही जीवित रही है।
डीएनए की कभी समाप्ति तारीख नहीं होती,क्योंकि राजनीतिक राजवंशों के पितृपुरुषों और कुलमाताओं द्वारा इसे दीवानी भीड़ के लिए व्यवस्थित कर दिया जाता है। डी-टैग एक प्रीमियम ब्रैंड है,जो सर्वाधिक बिक्री योग्य होता है। वंश प्रमाणपत्र किसी भी क्षेत्र में शक्तिशाली स्थान हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण योग्यता है। साथ ही,जाति एक अतिरिक्त योग्यता है। शाही राजवंश खत्म हो चुका है। जाति,वर्ग और समुदाय के आधार पर नया राजवंश बन चुका है। शक्ति के केंद्रों तक आसान पहुंच और संस्थानों पर बिना मूल्यांकन विवादमुक्त नियंत्रण के लिए पापा और ममा के नाम पर इठलाना ही पर्याप्त है।
किसी भी क्षेत्र में लाभांश रक्त संबंधों के आधार पर तय होते हैं,न कि मेरिट के आधार पर। पारिवारिक कब्जे के मामले में राजनीति और खेल आसान लक्ष्य बन चुके है। भारत के 70 प्रतिशत से अधिक खेल संस्थान राजनेताओं और कारोबारियों के बेटे-बेटियों द्वारा संचालित किये जा रहे है। वंशवादी संबद्धता का रसायन इतना सुनहरा है कि न्यायिक प्रयोगशालाओं में उच्चतम हस्तक्षेप भी उसकी चमक को कम नहीं कर पाता। जातीय क्षत्रपों या स्थानीय राजाओं के क्षेत्रीय राजनीतिक संगठनों में उनके पुत्र ही एकमात्र प्रबल दावेदार हैं। वंशवादी राजनीति के कभी धुर-विरोधी रहे कई पूर्व समाजवादियों ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। वे अपने पुत्रों को खुले तौर पर प्रमोट करते है हाल-फिलहाल में कई युवा राजनेता इसी सिद्धांत पर उभरे हैं, जो कि पूरे देश में सर्व स्वीकार्य ट्रेंड बन चुका है। भारत में केवल 30 राजनीतिक परिवार ही देश के 60 प्रतिशत से अधिक निर्वाचित पदों पर नियंत्रण रखते हैं।
इस मामले में राष्ट्रीय पार्टियां अछूती नहीं हैं। एक अध्ययन के अनुसार, उनके 20 प्रतिशत से अधिक पदाधिकारी बेटे, बेटियां, बहनें,पत्नियां, बहुएं और दामाद होते हैं,जो विधायक,सांसद और अन्य निर्वाचित निकायों के प्रमुख बनते हैं। कांग्रेस से लेकर सभी क्षेत्रीय दलों में शीर्ष पद वंशानुगत हैं। गांधियों,करुणानिधियों,पवारों,ठाकरे,चौटालों,बादलों,यादवों,अब्दुल्लाओं के जीन में ही राजनीति है। राजनीति के बाद,यह व्यवसाय है,जो भारतीय समाज में वंशवादी मॉडल के वर्चस्व के लिए टोन सेट करता है। भारतीय व्यापार जगत में परिवार हमेशा से हावी रहे हैं। नब्बे के दशक में जब आर्थिक सुधार आया,तो भारत में उम्मीद थी कि बड़े व्यवसायों के स्वामित्व का दायरा बढ़ेगा,ताकि गैर-पारिवारिक प्रबुद्ध भी उत्कर्ष उद्यमों का हिस्सा बन सकें। उदार आर्थिक नीतियों ने मध्यम वर्ग को उन कंपनियों के शेयरों में निवेश करने में सक्षम बनाया,जो बाजार से पैसा इकट्ठा करने के बाद अपने नियंत्रण को मजबूत करते थे।
भारत में करीब 34 ताकतवर वंशवादी परिवार राजनीति में हैं। हरियाणा भी राजनीतिक परिवारों की भरमार है और उसमें जो सबसे प्रमुख है वो है चौटाला परिवार। इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री, ओम प्रकाश चौटाला, व उनके छोटे बेटे और और हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता अभय चौटाला, अपने बड़े बेटे अजय चौटाला और अजय के पुत्र दुष्यंत और दिग्विजय के खिलाफ खड़े हुए हैं। पंजाब में बादल परिवार ने वंशवाद की राजनीति पर एकक्षत्र दबदबा बनाए रखा है। जिसमें शिरोमणी अकाली दल के संस्थापक और चार बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ध्वजवाहक हैं। वंशवाद की राजनीति देश के सबसे उत्तरी राज्य जम्मू और कश्मीर में शुरू होती है, जहां दो परिवार-अब्दुल्ला और मुफ्ती -दशकों से राजनीति में सक्रीय है। दोनों में से सबसे प्रमुख अब्दुल्ला हैं, जिनके तीन पीढ़ियों के कार्यकाल में कम से कम चार मुख्यमंत्री भी रहे हैं। दिल्ली की तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का झंडा बुलंद किया था। लेकिन उन्हें 2013 में आम आदमी पार्टी से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। जिसमें उन्हें खुद की सीट भी गंवानी पड़ी।
भारत लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है, 80 प्रतिशत से अधिक धन का स्वामित्व पांच प्रतिशत से भी कम व्यवसायी वर्ग के पास है,जिसने अपने सबसे लाभदायक प्रबंधन मॉडल के रूप में वंशवादी उत्तराधिकार को चुना है, जबकि व्यवसायों को सफल बनाने में वास्तविक प्रमोटर कड़ी मेहनत करते हैं। शीर्ष विश्वविद्यालयों से विदेशी डिग्री हासिल करने के बाद युवा पीढ़ी लौटते ही तुरंत काम संभाल लेती है। शेयरधारकों को उत्तराधिकारी के रूप में इन संतानों का ही चुनाव करना होता है। जनता से उम्मीद की जाती है कि वह कई मामलों में उत्तराधिकारियों की अक्षमता से होनेवाले नुकसान को उठाये। चूंकि,वंशवादी संस्थानों का सार्वजनिक तौर पर मूल्यांकन नहीं होता,ये ताकत और धन के बल पर अन्य लोगों को प्रतिस्पर्धा और व्यवस्था में प्रवेश करने से रोक देते हैं। फिल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या मामले में बॉलीवुड में वंशवादी शक्ति के बर्बर दुरुपयोग का मामला उठाया गया. ऐसा नहीं कि सभी फिल्म अभिनेता पैतृक या मातृ संरक्षण से सुपर स्टार बन गये हैं। बॉलीवुड में कुछ खानदानों के अत्यधिक दबदबे के कारण वंशवाद की धारणा बनी है।
जो लोग वंशवाद के प्रयोगशाल से पास होकर बाहर नहीं निकलते या वंशवाद के सांचे में नही बैठते उन्हें अपनी पहचान बनाने के लिए अतिरिक्त पऱिश्रम करना पडता है। जहां वंशवाद बहुत हावी है। शीर्ष सिविल सेवाओं में वरिष्ठ अधिकारियों की संतानें आइएएस,आइपीएस आदि के रूप में प्रवेश करने में अपनी पृष्ठभूमि की वजह से अधिक सक्षम हैं। निश्चित ही,उसमें से ज्यादातर मेरिट के आधार पर प्रशासक बनते हैं। हालांकि,पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण चयन प्रक्रिया के बारे में कई सवाल उठाये गये हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के पूर्व प्रधान सचिव अमरनाथ वर्मा के बारे में एक चुटकुला है। उनके लगभग 20 अति करीबी, जिसमें उनकी बेटी भी शामिल थी,आइएएस अधिकारी राज्य और केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे। ऐसे तमाम उदाहरण हैं,जहां अधिकारियों के बेटे-बेटियां इन सेवाओं में दाखिल होते है। एससी- एसटी अधिकारियों के चयन में एक समान प्रवृत्ति दिखायी देती है। संस्थानों पर नियंत्रण के मामले में मेरिट के बजाय वंश के जरूरी योग्यता बनने के कारण, भारत जल्द ही लगभग सभी क्षेत्रों में राजवंशों के बीच युद्ध का गवाह बन जायेगा। लगता है कि भारत राजवंशों द्वारा शासित लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। व्यापक तौर पर देखें तो वंशवाद अब लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ है। भारत ऐसे वंशवादियों से जल्दी छुटकारा नहीं पाया तो अतीत की तरह ताकत और राज्य के समर्थन से वंशवादी उन लोगों को दरकिनार कर देंगे, जिनका कोई गॉडफादर नहीं है।