बिहार में आधिकारिक तौर पर हार और जीत का फैसला तो 10 नवंबर को होगा,जब विधान सभा चुनाव के नतीजे आएंगे लेकिन इस गला काट प्रतियोगिता में- क्या नीतीश कुमार पांचवीं बार फिर से मुख्यमंत्री बन पाएंगे या फिर चिराग खेल बिगाडेंगें इस पर सबकी निगाहें टिकी है। बिहार में नीतिश कुमार के प्रति जनाक्रोश दिखाई दे रहा है। बेरोजगारी,हर साल तबाही का मंजर लाने वाला बाढ से बर्बाद किसान,गरीब नाराज दिख रहे। साथ ही बिहार के युवा रोजगार के लिए राज्य से महाराष्ट्र,दिल्ली,पंजाब,गुजरात की तरह रुख करते है। अब युवा राज्य में ही रोजगार की तलाश में नए मुख्यमंत्री की तलाश में है?लोगों की धारणा नीतिश कुमार के बारे में लोगों की धारणा यह हो गई है कि मौसम की तरह रुख बदलतेे है। हमारे संवाददाता द्धारा की जा रही जनता टॉक विशेष कार्यक्रम में लोगों के साथ की गई वार्ता में दिखाई दे रहा है कि बुजर्गों के साथ युवा वर्ग काफी गुस्से में है। गोपालगंज व सिवान जिला सबसे ज्यादा बाहर के देशों में रोजगार की तलाश में युवा पलायन करते है। जिसके कारण उनको दिल्ली,मुंबई अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्टों का सहारा लेते है। गोपालगंज का सबेया फिल्ड(एयरपोर्ट) अपनी बर्बता की कहानी बयां कर रहा है। पूरे बिहार में कहीं भी अंतर्राष्ट्रीय दर्जे का एयरपोर्ट नहीं है जो एयरपोर्ट है वो अंतर्राष्ट्रीय दर्जा के नहीं है। मीडिया सूत्रों के मुताबिक बिहार सूता फैक्टरी,चीनी मील जैसे फैक्टरियों को बंद करने में या ताला लगाने में लालू सरकार के जंगल राज को दर्शाते है। शायद बिहार के इतिहास के पन्नों में लालू के 15 साल का जंगलराज एक काला धब्बा होगा तो सुशासन बाबू (नीतिश कुमार) का 15 साल भी कोई काले धब्बों से कम नहीं है। शुरुआत के 5 साल नीतिश ने एनडीए की गोद में बैठकर बिताए तो 5 साल लालू के साथ गठबंधन करके सरकार चलाया। बीते 5 साल कभी लालू तो कभी भाजपा की गोद में बैठकर बिहार की जनता के जनादेश का सरेआम अपमान किया। बिहार आज भी अपनी अस्त्तिव की लडाई लडता नजर आ रहा है। जी हां मैं उस बिहार की बात कर रहा हूं जिसने आजाद भारत को प्रथम राष्ट्रपति,गौतम बुद्ध,महावीर,गुरुगोविंद सिंग जैसे महानुभूतियों को देश को समर्पित किया। ऐसे विद्वान जिसने अपनी कविता की रचना से देश विदेश में ख्याति प्राप्त की। हम सब जानते है कि आयआयटी,आयपीएस,आयएसएस के अभ्यार्थी ज्यादा संख्या में इसी राज्य से देश की सेवा में समर्पित होते है। फिर भी बिहार पिछडा राज्य क्यों है? राज्य सरकार की रणनीतियां या जनता की सहनशिलता। आज भी राज्य व्यवसाय करने के लिए दुसरे राज्य पर निर्भर है। तीन ओर से राज्यों से घिरा तो चौथे तरफ से नेपाल बिहार को घेरे बैठा है। बाकी राज्य से बिहार आयात कर रहा है। परंतू राज्य से निर्यात हेतू कुछ ही पदार्थ है,जो मौसमी मार से तहस नहस हो जाते है। राज्य के पर्यटन क्षेत्र भी अपनी बरबरता की कहानी कहतें है। वर्ष 2000 में हुए विभाजन की मार से राज्य में राजस्व देने वाली मुख्य कंपनियां झारखंड के हिस्से में चली गई। जिससे बिहार को आर्थिक मार अभी भी झेलनी पड रही है। परंतु पुरानी बातों पर ध्यान ना देते हुए वर्तमान की 15 वर्ष की सरकार ने क्या किया यह अहम भूमिका रखती है।
बिहार कभी उद्योग क्षेत्र में सबसे ज्यादा एवंम सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य हुआ करता था। लेकिन अचानक न जाने किसकी नजर लग गई। राज्य की सभी फैक्टरियां क्यों बंद हुई? अचानक गुंडा टैक्स,रंगदारी क्यों बढी?अचानक बिहार में ऐसा क्या घटा जिसके चलते व्यापारियों को अपना व्यवसाय बंद करना पडा। बिहार के लोगों को अचानक दूसरे राज्यों में पालयन करना पडा इसके पीछे मुख्य कारण शायद लालू का जंगल राज। परंतु लोगों की धारणा अब वर्तमान में जो सरकार है उसके लिए भी कुछ इसी प्रकार की है। सुशासन के नाम पर राज्य में कुशासन शुरु है। आजादी के बाद भी नेपाल से सटे हुए जिलों बाढ की स्थिति वैसे बनी रहती है जो आजादी के पहले के दौर में थी। मतलब ना बांध ना विकास।आज भी लोगों को बारिश के समय अपने पुस्तैनी घरों को छोडकर शराणार्थी रहना पडता है। सवाल यह है कि राज्य की कोई भी सरकार को यह क्यों नहीं दिखाई देता। बांध,पुल का निर्माण करके पुरानी बीमारी को खत्म कर सके। एक सवाल यह भी है कि आयआयटी,आयपीएस,आयएसएस ज्यादा संख्या देने वाले राज्य में मौलिक शिक्षा का अभाव है। राज्य में एम्स जैसे अथवा उच्च दर्जा वाले अस्पताल न के बराबर है। किसी भी जिले में कोई अप्रिय घटना हो जाए तो उन्हे पटना,गोरखपुर एकमात्र विकल्प बचता है। हाल ही में राज्य सरकार व्दारा हर घर जल योजना भी विफल नजर आ रही है। लोगों का कहना है की पानी की टंकी बन गई, टंकी से पाईप जुड गए परंतु नल से पानी नहीं है। चुनाव आते आते कई सारी योजनाओं का शिलान्यास किया गया। लोग लुभावने वादे किए गए। नीतिश कुमार राज्य में किए गए कार्यों को बखान करते थकते न हो परंतु सच्चाई यह है कि राज्य में मूलभूत सुविधा देने में नाकाम रहे। राज्य में अक्टूबर नवंबर में होने जा रहे चुनाव का असर व्यापारियों को भी पडने की संभावना है। पहले से ही कोरोना मार झेल रहे व्यापारी चुनाव की मार खाने को तैयार रहे। व्यापारी वर्ग का मानना है कि आने वाले दिनों में नवरात्र दिवाली,एवंम छठ महापूजा जैसे त्यौहार आ रहे है जिसके लिए ग्रामीण आंचल के व्यापारी को भारी नुकसान का अंदेशा है।
हमारे प्रतिनिधियों की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात छनकर निकल रही है कि इस बार बिहार के चुनाव में कडी टक्कर होने जा रही है। लोगों का मानना है कि नितिश कुमार कभी कहते हुए थकते नहीं थे कि बाहुबलियों से उनका कोई संबंध नही,परंतु कई सालों से बाहुबलियों से संबंध बढता गया और उनके नाम पर राज कर गए। राज्य में सर्वे के अनुसार कहीं भी मूलभूत सुविधाएं नही। लोग यहां तक कह रहे कि सडक नही तो वोट नहीं। कहीं कहीं तो लोगों ने इतना कहने पर परहेज नहीं किए कि इस बार डंडा लेकर चहेटेंगे। कुछ जगहों पर ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 15 सालों से अपने क्षेत्र के विधायक का चेहरा तक नहीं देखा।इसका आंकलन इस तरह लगाया जा सकता है कि नेता मस्त जनता त्रस्त। युवाओं का अपने राज्य के प्रति प्रेम भी उमड कर आ रहा है। युवा राज्य में ही रोजगार,शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार पाने के लिए आवाज उठा रहे है। युवाओं का रुख नीतिश सरकार के प्रति मोहभंग हो चुका है। अब युवा कहीं न कहीं आरजेडी के तेजस्वी यादव या लोजाप के चिराग पासवान की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहा है। परंतु चुनावी समीकरण का खेल यहां नहीं रुकता।आरजेडी की 15 साल की राजनीतिक सफर से कहीं भयभीत भी है तो बीते कुछ दिनों से आरजेडी के बैनर से लालू नदारद हो गए है। अब तेजस्वी साफ छवि के सहारे नैय्या पार करने की फिराक में लगे है। केंद्र में सरकार के साथ कार्य में लगे हुए चिराग पासवान की ओर भी लोगों का झुकाव है लेकिन उन्होंने एकेला चलो का नारा देकर सत्ता का समीकरण बिगाड दिया है। जिससे राज्य में किसी की भी सरकार बनती नजर नहीं आ रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में लोग नेताओं से जिस प्रकार के सवाल पूछने वाले है क्या नेता उन सवालों के जवाब देने को तैयार है? कारण यह है कि न तो विकास है न तो सुशासन। लोगों का आक्रोश अपनी चरमसीमा पर है। राज्य में होने वाले चुनाव में कोरोना का साया भी है जिससे लोग चुनाव केंद्र जाने से भी परहेज करेंगे। शायद कम मतदान हो जिसके चलते राज्य में त्रिकोणीय परिस्थतियां बनने की संभावना बने। सारे समीकरण और माहौल,जनता के मूड को भांपते हुए ऐसा निष्कर्ष निकल रहा है कि इस बार के चुनाव में बिहार की जनता परिवर्तन के मूड में दिखाई दे रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि एक बिहारी सब पर भारी वाली कहावत चरितार्थ होती है या नहीं?