दिल्ली| व्हीएसआरएस न्यूज: भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई अवतार लिए तथा धर्म की स्थापना की। नृसिंह अवतार भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है। भगवान नृसिंह शक्ति एवं पराक्रम के देवता हैं तथा इन्हें शत्रुओं के नाशक के रूप में जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु का वध किया था। इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है जब भक्तों पर अत्याचार बढ़ने पर भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा के लिए अवतार लिया है. आइए जानते हैं भगवान नरसिंह के अवतार लेने की पौराणिक कथा…
कश्यप ऋषि के दो पुत्रों में से एक का नाम हिरण्यकश्यप था। उसने कठोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया था कि उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव मार नहीं पाएगा। न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, न आकाश और न ही पाताल में, न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से। यह वरदान प्राप्त करके वह खुद को ईश्वर समझ बैठा था।हिरण्यकश्यप अपनी प्रजा को स्वयं की पूजा करने के लिए दबाव डालने लगा, जो उसकी पूजा नहीं करता उसे वह तरह तरह की यातनाएं देता था। वह भगवान विष्णु के भक्तों पर क्रोध करता था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रह्लाद था। वह भगवान विष्णु का परमभक्त था। जब इसकी जानकारी हिरण्यकश्यप को हुई तो उसने प्रह्लाद को समझाया। उसने अपने बेटे से कहा कि उसके पिता ही ईश्वर हैं, वह उनकी ही पूजा करे। लेकिन हिरण्यकश्यप के बार-बार मना करने पर भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी।हिरण्यकश्यप ने इसे अपना अपमान समझ कर प्रह्लाद को मारने के लिए कई यत्न किए, लेकिन श्रीहरि विष्णु की कृपा से वह बच जाता। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने के लिए मनाया।
होलिका को वरदान मिला था कि आग से उसका बाल भी बांका नहीं होगा। लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी, तो श्रीहरि की कृपा से वह स्वयं उस आग में जल गई और प्रह्लाद बच गया। अंत में क्रोधित हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को खंभे से बांध कर उसे मारने के लिए अपनी तलवार निकाली और बोला बता तेरा भगवान कहां है, प्रहलाद ने कहा कि भगवान यहीं इसी खंबे में हैं, जहां आपने मुझे बांध रखा है। उसी समय उसके महल का खंभा फटा और नरसिंह भगवान अवतरित हुए. उनका रूप देख हिरण्यकश्यप कांप उठा. नरसिंह देव, ना पूरे पशु थे और ना पूरे मनुष्य, उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रों से नहीं बल्कि अपनी गोद में बिठाकर अपने नाखूनों से उसकी छाती चीर कर किया था.
पूजा का शुभ मुहूर्त
नृसिंह जयंती सायंकाल पूजा का समय- दोपहर 4 बजकर 26 मिनट से शाम 7 बजकर 11 मिनट तक.
पूजा की अवधि: 2 घंटे 45 मिनट
भगवान नृसिंह की पूजा-विधि
भगवान नृसिंह की पूजा शाम के समय की जाती है. दोपहर के समय तिल, गोमूत्र, मिट्टी और आंवले को शरीर पर मलकर शुद्ध जल से स्नान करे पूजा के स्थान को साफ कर भगवान नृसिंह की फोटो लगाएं. भगवान नृसिंह के चित्र के सामने दीपक जलाएं| उन्हें प्रसाद और लाल फूल अर्पित करें| इसके बाद अपनी मनोकामना का ध्यान करके इनके मंत्रों का जाप करें. भगवान नृसिंह के मंत्रों का जाप मध्य रात्रि में भी करना सबसे शुभ माना जाता है. व्रत के दिन फलाहार करे | अगले दिन किसी गरीब व्यक्ति को अन्न-वस्त्र का दान करके अपने व्रत का समापन करें|