दिल्ली| व्हीएसआरएस न्यूज: हर वर्ष मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री नारायण के निमित्त रखा जाता है इस बार यह व्रत कल यानि 23 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी के अनुसार रविवार को विक्रम संवत 2078की वैशाख शुक्ल एकादशी है। इस दिन परिवार के सभी व्रत अवश्य करें। बहुत कम ऐसे सुंदर याेग बनते हैं। पद्मपुराण के अनुसार यदि सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक थोड़ी सी एकादशी, द्वादशी, एवं अन्त में किंचित् मात्र भी त्रयोदशी हो, तो वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ कहलाती है। यदि एक ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ को उपवास कर लिया जाये तो एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल ( लगभग पूरी उम्रभर एकादशी करने का फल )प्राप्त होता है।
श्रीनारायण की करें पूजा
एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीपदान करना चाहिए। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए ।द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
मोहिनी एकादशी की महिमा
शास्त्रों के अनुसार मोहिनी, भगवान विष्णु का अवतार रूप थी। समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत कलश निकला, तो इस बात को लेकर विवाद हुआ कि राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत का कलश कौन लेगा। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। अमृत कलश को बचाने के लिए और राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था। इस प्रकार, सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की सहायता से अमृत का सेवन किया। यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल एकादशी का था, इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह वही व्रत है जिसे राजा युधिष्ठिर और भगवान श्रीराम ने रखा था। इस दिन उपवास रखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रती को दशमी तिथि के दिन एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। षोडषोपचार सहित भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवत कथा का पाठ करना चाहिए|
मोहिनी एकादशी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,सरस्वती नदी के पास भद्रावती नाम का एक सुन्दर नगर था। राजा धृतिमान जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे, इस स्थान पर शासन करते थे। उनके पाँच पुत्र थे, जिनमें से पाँचवाँ पुत्र जिसका नाम धृष्टबुद्धि था, बहुत बुरे कामों और अनैतिक कार्यों में शामिल होने वाला पापी था।यह सब देखकर, राजा धृष्टिमन ने धृष्टबुद्धि का त्याग कर दिया। जीवित रहने के लिए, वह डकैती के कृत्यों में शामिल हो गया। परिणामस्वरूप, उसे राज्य से बाहर निकाल दिया गया। धृष्टबुद्धी एक जंगल में रहने लगा। एक बार जब वह जंगल में भटक रहा था, तो वह ऋषि कौंडिन्य के आश्रम में पहुंचा। यह वैशाख मास का समय था और ऋषि कौंडिन्य स्नान कर रहे थे। कुछ बूंदें निकल गयीं और धृष्टबुद्धि पर पड़ गयीं। इस वजह से धृष्टबुद्धि ने आत्म-साक्षात्कार और अच्छी भावना को प्राप्त किया और इस तरह उसने अपने सभी अनैतिक कार्यों पर पछतावा किया। उसने ऋषि से अपने पिछले पापों और बुरे कर्मों से मुक्ति के मार्ग की तरफ जाने के लिए मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया। इसके लिए, ऋषि ने उसे मोहिनी एकादशी व्रत का पालन करने के लिए कहा, ताकि उसे पापों से छुटकारा मिल सके। एकादशी के दिन, धृष्टबुद्धि ने पूरी श्रद्धा के साथ एकादशी व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप धुल गए और वह विष्णु लोक में पहुंच गया।
एकादशी का महत्व
आपको बताते चले कि हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल 24 एकादशियां आतीं है। इन सभी एकादशी तिथियों में मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। एकादशी व्रत का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर धर्मराज युद्धिष्ठिर ने एकादशी का व्रत विधिपूर्वक पूर्ण किया था। उन्होंने स्वयं युद्धिष्ठिर और अर्जुन को एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। मोहिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होतीं हैं और जीवन में आने वाली समस्याओं से मुक्ति मिलती है।