इंदौर । व्हीएसआरएस न्यूज़ : मध्य प्रदेश में युद्ध की सदियों पुरानी परंपरा हिंगोट इस बार नहीं मनाई जाएगी। इतिहास में यह पहली बार है जब प्रशासन ने कोरोना संक्रमण की वजह से इसकी इजाजत नहीं दी है। हिंगोट युद्ध दो समूहों द्वारा दीवाली के एक दिन बाद मनाई जाती है। कोविड-19 के प्रकोप के बीच मध्य प्रदेश में 200 साल से चली आ रही एक परंपरा टूट गई है, इस मर्तबा हिंगोट युद्ध नहीं मनाया जा रहा है। इतिहास में यह पहली बार है जब प्रशासन ने कोरोना प्रकोप के चलते इसकी अनुमति नहीं दी है। हिंगोट युद्ध दो समूहों द्वारा दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता रहा है। कलंगी और तुर्रा समूह के लोग गौतमपुरा के देपालपुर गांव में एक दूसरे पर बारूद से भरे हुए हिंगोट फेंकते हैं।
बता दें कि तुर्रा टीम रुणजी गांव की है, जबकि कलंगी की टीम इंदौर से लगभग 59 किलोमीटर दूर गौतमपुरा गांव की है. यह आयोजन में कई लोग घायल भी हो जाते हैं। यही नहीं इसमें अबतक कई लोगों की जान भी जा चुकि है। मान्यता है कि गौतमपुरा क्षेत्र की सुरक्षा में तैनात सैनिकों ने मुगल सेना के घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे। यहीं से यह परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक मुगल सेना के दुश्मन घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे। सटीक निशाने के लिए वे इसका कड़ा अभ्यास करते थे। यही अभ्यास परंपरा में बदल गया।
हिंगोट युद्ध हर साल दीपावली के दूसरे दिन दो गांवों गौतमपुरा और रूणजी के ग्रामीणों के बीच होता था। इसमें दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे पर बारूद से भरे हुए हिंगोट (स्थानीय स्तर पर तैयार खतरनाक पटाखा) फेंकते हैं।अनूठे युद्ध को देखने दूरदराज से लोग पहुंचते हैं। इस युद्ध में कई ग्रामीण घायल तक हो जाते हैं। पिछले सालों में इस युद्ध में कुछ लोगों की मौत तक हो गई है।