नई दिल्ली(व्हीएसआरएस न्यूज) महाराष्ट्र में मराठाओं को एक बडा झटका सुप्रिम कोर्ट देते हुए मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द करने का आज फैसला सुनाया। मराठा समुदाय नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे थे। इनको आरक्षण दिया जाता तो 50 फीसदी के पार हो जाता जो देशहित में नहीं था। इसका आधार बनाकर अन्य राज्य भी मांग कर सकते थे।
लंबी सुनवाई के बाद 1992 इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार की जरुरत नहीं है। न्यायमूर्ति भूषण ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मराठा आरक्षण की जरुरत नहीं संविधान की धारा 342 ए का सवाल है उस पर संविधान संशोधन को बरकरार रखा गया है। इस आर्टिकल में कहा गया है कि राष्ट्रपति किसी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश के किसी भी समाज को सामाजिक,शैक्षणिक रुप से पिछडे वर्ग को मान्यवता दे सकता है। संसद को अधिकार है कि पिछडे समुदायों की सूची में शामिल कर सकता है।
संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी। बंबई हाई कोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए तथा नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए्। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से दलील दी गई है कि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को रिजर्वेशन देने का फैसला संवैधानिक है और संविधान के 102 वें संशोधन से राज्य के विधायी अधिकार खत्म नहीं होता है। ध्यान रहे कि कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों ने भी आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र जैसा ही तरह का रुख अपनाया।