- गोपाष्टमी तिथि का समापन- 22 नवंबर, रविवार रात 22 बजकर 51 मिनट तक होगा
दिल्ली। व्हीएसआरएस न्यूज: आज 22 नवंबर को गोपाष्टमी मनाई जा रही है। हिंदू धर्म में गोपाष्टमी का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, गोपाष्टमी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह धार्मिक पर्व गोकुल, मथुरा, ब्रज और वृंदावन में मुख्य रूप से मनाया जाता है।गोपाष्टमी के दिन गौ माता, बछड़ों और दूध वाले ग्वालों की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा पूर्वक पूजा पाठ करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। उन्हें नहलाकर श्रृंगार करते हैं, पैरों में घुंघरू बांधते हैं। गाय की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते है। इस दिन ग्वालों या दूधवालों का भी सम्मान किया जाता है। गोपाष्टमी पर गौपूजन प्रारंभ करनेवाले भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है। सनातन धर्म में गाय को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है।आचार्य पंडित संजीत भरद्वाज जी के अनुसार भविष्य पुराण में गाय में महिमा बताई गई है। भविष्य पुराण के अनुसार गाय के गले में विष्णु, मुख में रुद्र और पृष्ठ में ब्रह्म का वास है। रोमकूपों में सभी ऋषि, पूंछ में अनंत नाग, खुरों में समस्त पर्वत, मध्य में सभी देवता और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित रहते हैं। गाय का दूध तो अमृत कहा गया है।
इसमें स्वर्ण मिला होता है जिसकी वजह से गाय का दूध हल्का पीला होता है। गाय की कूबड़ शिवलिंग के आकार की और ऊपर की ओर उठी होती है जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोख लेती है। इससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता जोकि सीधे दूध और मूत्र में मिलता है।
आचार्य पंडित संजीत भरद्वाज जी बताते हैं कि गोपाष्टमी पर गाय की पूजा जरूर करें। गाय को हरा चारा, मटर एवं गुड़ खिलाएं। जिनके घरों में गाय नहीं हैं वे गौशाला जाकर गाय की पूजा कर सकते हैं। आज गौशाला में गाय के भोजन के लिए नकद राशि दान कर सकते हैं। ग्वालों या दूध विक्रेताओं को तिलक लगाएं। इससे पुण्य फल प्राप्त होता है।
आपको बताते चले की श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण जब पांच वर्ष के हो गए और छठे वर्ष में प्रवेश किया तो एक दिन यशोदा माता से बाल कृष्ण ने कहा-मइया! अब मैं बड़ा हो गया हूँ। अब मुझे गोपाल बनने की इच्छा है मैं गोपाल बनूं? मैं गायों की सेवा करूं? मैं गायों की सेवा करने के लिए ही यहां आया हूं। यशोदाजी समझाती हैं कि बेटा शुभ मुहूर्त में मैं तुम्हें गोपाल बनाउंगी। बातें हो ही रहीं थी कि उसी समय शाण्डिल्य ऋषि वहां आए और भगवान कृष्ण की जन्मपत्री देखकर कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गौचारण का मुहूर्त निकाला। बाल कृष्ण खुश होकर अपनी माता के ह्रदय से लग गए। झटपट माता यशोदा जी ने अपने कान्हा का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगीं तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे मैया यदि मेरी गायें जूती नहीं पहनतीं तो मैं कैसे पहन सकता हूं और वे नंगे पैर ही अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गायों को चराने वृन्दावन जाने लगे। अपने चरणों से वृन्दावन की रज को अत्यंत पावन करते हुएआगे-आगे गौएं और उनके पीछे -पीछे बांसुरी बजाते हुए श्याम सुन्दर तदंतर बलराम, ग्वालबाल तालवन में गौचारण लीला करने लगे।