नई दिल्ली । व्हीएसआरएस न्यूज़ : कांग्रेस के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का बुधवार तड़के निधन हो गया। इस बात की जानकारी उनके बेटे फ़ैसल पटेल ने ट्वीट के जरिए दी। इसके साथ ही फ़ैसल ने सभी से कोरोना गाइडलाइंस का पालन करने की अपील भी की। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पटेल, जो COVID-19 के लिए सकारात्मक परीक्षण के बाद गुरुग्राम के अस्पताल में इलाज करा रहे थे, ने बुधवार की सुबह अंतिम सांस ली, उनके बेटे फ़ैसल ने पुष्टि की। एक ट्वीट में फ़ैसल ने कहा कि गुजरात से राज्यसभा सांसद की बुधवार को तड़के 3.30 बजे मौत हो गई।
इस दौरान अहमद पटेल के कई अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था। इसके बाद उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां बुधवार सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर अहमद पटेल का निधन हो गया। फैजल पटेल लिखते हैं, ‘मैं सभी शुभचिंतकों से आग्रह करता हूं कि वे कोरोना गाइडलाइंस का विशेष रूप से पालन करें और सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखें ।
गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर में पैदा हुए अहमद पटेल का राजनीतिक कॅरियर काफी लंबा है। पटेल तीन बार लोकसभा सांसद और पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जमाने में पटेल पहली बार 1977 में भरूच संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े और विजयी हुए। 1980 के लोकसभा चुनाव में वह फिर भरूच संसदीय सीट से चुनाव लड़े और विजयी हुए। 1984 के लोकसभा चुनाव में वह फिर निर्वाचित हुए। 1993 से अहमद राज्यसभा सदस्य थे। 2001 से वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार है। वह सोनिया गांधी के बेहद करीबी रहे।पटेल को 10 जनपथ का चाणक्य कहा जाता था। कांग्रेस पार्टी में उनका दबदबा था। उनके बारे में खास बात यह है कि वह कभी मंत्री नहीं रहे, लेकिन सत्ता के केंद्र में रहे। वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार व बेहद करीबी थे। कांग्रेस में वह बेहद ताकतवर व असरदार होते हुए भी लो-प्रोफाइल रखते थे। पटेल की कोशिश रहती थी कि दिल्ली और देश की मीडिया में उनकी जरा भी खबर न चले। सत्ता के केंद्र में रहते भी वह सुर्खियों से दूर रहते थे। वह किसी भी टीवी चैनल पर नहीं दिखते थे। राजीनति से दूर उन्हें बड़ी सादगी का जीवन बिताना पसंद था।गुजरात से आने वाले अहमद पटेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव थे। वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिनका 10 जनपथ में सीधा आना-जाना था। वे सोनिया-राहुल के वफादार होने के साथ ही पार्टी में सबसे कद्दावर राजनेता भी थे।कांग्रेस आलाकमान के निर्देशों और संकेतों को उन्हीं के जरिए दूसरे बड़े नेताओं तक पहुंचाया जाता था।
- “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए बुधवार को कहा कि पटेल एक ऐसे कामरेड, निष्ठावान सहयोगी और मित्र थे जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उन्होंने एक शोक संदेश में कहा, ‘‘श्री अहमद पटेल के जाने से मैंने एक ऐसा सहयोगी खो दिया है,जिनका पूरी जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था। उनकी निष्ठा और समर्पण, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, मदद के लिए हमेशा मौजूद रहना और उनकी शालीनता कुछ ऐसी खूबियां थीं, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थीं।” साथ ही उन्होंने कहा कि, ‘‘मैंने ऐसा कॉमरेड, निष्ठावान सहयोगी और मित्र खो दिया जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता। मैं उनके निधन पर शोक प्रकट करती हूं और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करती हूं।” अहमद पटेल का बुधवार को निधन हो गया।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी सत्ता में आए तो 1985 में उन्होंने पटेल को अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1987 में उन्होंने बतौर सांसद सरदार सरोवर प्रोजेक्ट की निगरानी के लिए बनाई गई नर्मदा मैनेजमेंट ऑथरिटी के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। 1988 में उन्हें जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव नियुक्त किया गया। नई दिल्ली स्थित इस भवन का निर्माण पटेल की ही निगरानी में हुआ था। उनके राजनीतिक करियर के लिए ये एक मील का पत्थर भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्रोजेक्ट काफी समय से ठंडे बस्ते में था।
कांग्रेस का दामन थामने के बाद से ही पटेल का कद कांग्रेस में लगातार बढ़ता ही गया लेकिन कई मोर्चों पर इसका पता भी साफतौर पर चला था। यूपीए सरकार के दौरान (2004-2014) करीब एक दशक तक पार्टी के लिए वो संकटमोचक की भी भूमिका में दिखाई दिए। इतना ही नहीं इसके बाद भी उन्होंने इस भूमिका को काफी हद तक सफलतापूर्वक निभाया। 2019 में महाराष्ट्र में बनने वाली सरकार के गठन को लेकर जो अशांति शुरुआत में दिखाई दी थी उसको शांत करने अपने नेताओं को एकजुट रखने में भी उन्होंने अहम जिम्मेदारी निभाई थी। पार्टी के अंदर छिड़े या मचे किसी भी तरह के घमासान को शांत करने या इसके बाबत मीडिया में पार्टी के विचार रखने के लिए कांग्रेस हमेशा ही उन्हें आगे करती थी।